मानव तथा पशु-पक्षी समुदाय का सनातन परम्परा से अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। कई पशु समुदाय तो मानव-जीवन के लिए रीढ़ की हड्डी के समान है, जिनके बिना जीवन की कल्पना असंभव प्रतीत होती है। पालतू पशु तो जीवन रक्षक हैं ही परन्तु जंगली पशु भी पर्यावरण के रक्षक हैं। पक्षी जगत से वनस्पति का विकास होता है। पक्षीगण वृक्षों पर बैठकर फल खाते हैं, उनके परागण से पृथ्वी पर नए-नए पौधों का विकास होता है। बीजों के अंकुरण से धरा पर हरीतिमा सर्वदा सुरक्षित रहती है। हमारे सनातन धर्म में देवगणों ने पशु-पक्षियों को वाहन बनाकर समाज में उन्हें उच्च पद प्रदान किया है। वे पशु पक्षी देवताओं के साथ बड़ी श्रद्धा के साथ पूजनीय हैं। इस लेख के माध्यम से विभिन्न देवताओं के वाहन पशु पक्षियों का वर्णन करेंगे और उनकी उपयोगिता कितनी है? इस विषय का विश्लेषण करेंगे।
Which animal or bird is the vehicle of which deities
नन्दी (वृषभ) : नन्दी (बैल) शिवजी का वाहन है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। सदियों से कृषि कार्य में बैल का उपयोग किया जाता है। बैल का उपयोग गाड़ी जोतने (बैल गाड़ी) में होता है। प्राचीन समय में यही आवागमन का साधन था। सामान ढोने में भी इसका उपयोग किया जाता था। बैल एक परिश्रमी प्राणी है। शिव पूजन के समय नन्दी पूजन आवश्यक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नन्दी के कान में अपनी इच्छित वस्तु माँग ली जाए तो भक्त के मन की बात पूर्ण हो जाती है।
सिंह : सिंह माता दुर्गा का वाहन है। यह जंगल का राजा है। सारनाथ में बने सिंह स्तंभ में चार मुख हैं। ये शक्ति, साहस, आत्मविश्वास एवं गौरव का प्रतीक है। इसके निचले हिस्से में एक घोड़ा और बैल है। घोड़ा पराक्रम का तथा बैल शक्ति का प्रतीक है। सिंह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। भगवान ने नृसिंह का रूप धारण कर अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी और हिरण्यकश्यप का वध किया था।
श्वान : यह भैरवनाथ का प्रिय वाहन है। विशेषकर कृष्ण श्वान को तो भैरवनाथ का ही प्रतीक माना जाता है। दत्तात्रय भगवान को श्वान विशेष प्रिय थे। पांडवों में ज्येष्ठ युधिष्ठिर भी स्वर्ग जाते समय श्वान को ले गए थे। यह एक स्वामी भक्त पशु हैं। पुलिस विभाग में श्वान अपराधियों को पकड़ने में सहायता करते हैं। इनकी घ्राणशक्ति बड़ी तेज होती है।
हाथी : इन्द्र देवता का वाहन ऐरावत हाथी है। हाथी के दर्शन यदि प्रात:काल हो जाए तो शुभ माना जाता है। बाल्यावस्था में जब गणेश का सिर शंकरजी ने काट दिया था तब हाथी का सिर ही उनको लगाया गया था। यह कार्य अश्विनी कुमारों ने ही किया था। प्राचीन समय में दीवारों पर हाथी के आकर्षक चित्र विभिन्न रंगों से बनाए जाते थे। ये शुभ सूचक होते थे।
भैंसा : यह यमराज का वाहन है। ऐसी मान्यता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के पूर्व काले भैंसे पर बैठकर ही यमराज प्राणहरण करने के लिए आते हैं।
गधा : गधा शीतला माता का वाहन है। यह एक सीधा-सादा प्राणी है।
मृग : मृग एक चंचल प्राणी है। यह किसी देवता का वाहन तो नहीं है परन्तु इसका संबंध शंकरजी से है। वे मृग चर्म ही धारण करते हैं। कई मृगों की नाभि क्षेत्र से कस्तूरी नामक औषधि प्राप्त होती है।
कछुआ : समुद्र मंथन के अवसर पर कछुए की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। मन्द्राचल पर्वत की मथनी बजाकर कछुए की पीठ पर ही मन्थन कार्य सम्पन्न किया गया था। सनातन धर्म में कूर्मावतार का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु ने ही कूर्मावतार ग्रहण किया था। कछुआ अंतर्मुखी होता है और विपरीत परिस्थितियों में अपनी इन्द्रियों को वश में रखता है।
नाग : भगवान विष्णु तो शेषशायी हैं। शिवजी अपने कंठ में सर्प को हार के रूप में धारण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना नदी में कालियानाग का उद्धार कर सभी को उसके भय से मुक्ति किया था। भारतीय संस्कृति में नागपंचमी पर नाग पूजन किया जाता है।
चूहा : चूहा गणेशजी का वाहन है। मूषक निरन्तर जागरूक रहने सर्वत्र सर्वदा ज्ञान के प्रकाश का विस्तार करने में सहायता करता है। मूषक वाहन का तात्पर्य है। लोक अभिमान त्याग कर मूषक वत हृदयरूपी बिल में ब्रह्म को जाने और उसकी उपासना करें।
अश्व : अश्व सूर्य देव का वाहन है। सूर्यदेव के रथ को सात अश्व की आवश्यकता होती है। सम्पूर्ण विश्व में अश्व को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मशीन की गुणवत्ता अश्व शक्ति से ही परखी जाती है। अश्व स्वामीभक्त होता है। यह चंचल, चपल होता है।
वानर : आदि काल से ही वानर का मानव जाति से सम्बन्ध रहा है। मनुष्य का वर्तमान स्वरूप पूर्व के वानर का ही विकसित स्वरूप है। भगवान श्रीराम ने तो वानर सेना की सहायता से ही लंका पर विजय प्राप्त की थी। हमारे पूज्य आदरणीय देवता श्री हनुमानजी का स्वरूप भी एक विशालकाय, तेजस्वी बुद्धिमान वानर रूप ही है। उन्होंने अपनी वाक्पटुता से ही रावण के छक्के छुड़ा दिए थे।
मोर : कार्तिकेय का वाहन मयूर है। यह हमारे देश का राष्ट्रीय पक्षी है। मोर का नृत्य बड़ा ही चित्ताकर्षक होता है। भगवान कृष्ण मोर के पंख का ही मुकुट धारण करते हैं। मोर और सर्प की दुश्मनी रहती है परन्तु शिवजी ने दोनों को साथ रखकर विपरीत स्वभाव के लोगों को सौहार्द्र और प्रेम से रहने की शिक्षा दी है।
हंस : यह माता सरस्वती का वाहन है। यह पवित्रता का प्रतीक है। कुछ धार्मिक ग्रन्थों में गायत्री माता तथा ब्रह्माजी के वाहन भी हंस हैं। यह नीर क्षीर विवेकी होता है।
बाघ : बाघेश्वरी माता का वाहन बाघ है। यह जंगल में रहता है। यह जंगल में प्राणियों का शिकार करता है। भगवान शंकरजी भी बाघाम्बर धारण करते हैं।
कबूतर : कामदेव की पत्नी रति का वाहन कबूतर है। प्राचीन समय में कबूतर सन्देश वाहक का कार्य करते थे। इसे शान्ति का प्रतीक कहा गया है। कबूतरों को खाने के लिए दाने डालना शुभ माना जाता है।
तोता : तोता कामदेव का वाहन है। यह एक सुन्दर पक्षी है। इससे बातचीत करने पर कुछ ही दिनों में यह हूबहू नकल करके बोलने लगता है। विश्व में अनेक प्रजातियों के तोते पाए जाते हैं। इनकी वाक् पटुता तथा सुन्दरता के कारण इन्हें घरों में पाला जाता है। वर्तमान समय में इन्हें पालने पर प्रतिबन्ध है। आश्रम में रहने वाले तथा डाकुओं के क्षेत्र में रहने वाले तोतों की कहानी प्रसिद्ध है जिसमें संगति के परिणाम की शिक्षा दी जाती है। माता सीता ने भी अनेक पक्षी पाल रखे थे। ऐसा वर्णन श्रीरामचरितमानस में है।
कौआ : कौआ शनि देव का वाहन है। पौराणिक ग्रंथों में घोड़ा, हाथी, भैंसा, सियार, मोर, सिंह, गधा तथा हंस भी शनिदेव के वाहन हैं। सामान्यत: कौआ एक निषिद्ध प्राणी है। इसकी उम्र लम्बी होती है। कौओं के सम्बन्ध में कई अन्धविश्वास प्रचलित हैं। श्राद्ध पक्ष में कौओं का विशेष महत्व है। घर की छत पर, कौओं के लिए भोजन रखा जाता है। कहा जाता है कि छत पर कौओं के बोलने से अतिथि आगमन का संकेत होता है।
गरूड़ : यह भगवान विष्णु का वाहन है। इसकी दृष्टि तेज होती है।
उल्लू : यह लक्ष्मीजी का वाहन है। इसके दर्शन शुभ माने जाते हैं। यह आर्थिक समृद्धि का द्योतक है। यह निर्भयता और क्षमता का प्रतीक है। यह दूरदृष्टि रखने वाला प्राणी है। ऐसी मान्यता है कि जब अमावस्या के दिन लक्ष्मीजी पधारीं तो अपनी दूरदृष्टि से उल्लू ने उन्हें देख लिया और तत्काल उनके पास पहुँच गया और उनका वाहन बन गया।
बिल्ली : बिल्ली को राहु का वाहन बतलाया गया है। राहु तथा केतु छाया ग्रह माने गए हैं। इनका प्रभाव जातक के जीवन में उथल-पुथल मचा देता है। बिल्ली को अलक्ष्मी का वाहन भी कहा गया है। इसे पितृ का रूप भी मानते हैं।
मगर : इसे मगरमच्छ भी कहते हैं। गंगा नदी का वाहन मगरमच्छ है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार यह खोड़ियार माता का भी वाहन है। यह बहुत शक्तिशाली, हिंसक तथा क्रूर होता है।
मछली : मछली को भी गंगा नदी का वाहन कहा गया है। सनातन धर्म में मत्स्यावतार का प्रमुख स्थान है। पानी के शुद्धिकरण में मछली का प्रमुख स्थान है। घरों में भी रंगीन मछलियों को रखना शुभ माना जाता है।
छिपकली : छिपकली भगवान वेंकटेश्वर का वाहन है। बहुधा यह घरों में छत पर घूमते हुए दिखाई देती है। अब हम कुछ ऐसे पशु पक्षियों का वर्णन करेंगे जो किसी देवता के वाहन तो नहीं है, परन्तु हमारे दैनिक जीवन में हितकारी और पर्यावरण के संरक्षण में सहायक है।
गाय: गाय हमारी माता है और पूजनीय हैं। सनातन धर्म के अनुसार गाय के शरीर में तैंतीस करोड़ देवता का निवास है। यह पवित्र प्राणी हैं। भगवान कृष्ण को बाल्यावस्था से ही गाय प्यारी थी। गाय का दूध, मक्खन, गोमूत्र, गोबर, घी, दही सभी कुछ औषधीय गुणों से भरपूर है। समुद्र मंथन में कामधेनु निकली थी। राजा दिलीप ने गौ सेवा पुत्र प्राप्ति के लिए की थी।
ज्योतिष शास्त्र भी पशुपक्षियों से अछूता नहीं है। बारह राशियों में से कई राशियों के नाम पशु पक्षियों पर ही है-
मेष, मकर, वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक तथा मीन।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान तथा मानव समाज का पशु-पक्षियों से अटूट सम्बन्ध है। ये हमारे पर्यावरण के संरक्षक है। दूषित जल, वृक्षों की अंधाधूंध कटाई, स्थान-स्थान पर मोबाइल टॉवर, पवनचक्की, आकाशीय वाहन तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक तारों के जंजाल से इनकी संख्या में निरन्तर कमी होती जा रही है। यह पर्यावरण के सन्तुलन को बनाने में शुभ संकेत नहीं है।
डॉ. शारदा मेहता
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