Hartalika Teej 2023 - हरतालिका तीज के 8 अनिवार्य नियम, भूले तो अनर्थ

Bhopal Samachar
हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2023) व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की अराधना से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। इस साल यह व्रत 18 सितंबर को है। हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है।

हरतालिका तीज व्रत हर स्त्री के लिए बेहद खास और लाभकारी माना गया है, परंतु यह व्रत, इतना ही कठिन भी है। इसके कुछ अनिवार्य नियम है जिनका पालन व्रत करने वाली महिलाओं को करना ही होता है:- 
1. अगर आप एक बार हरतालिका तीज व्रत रखती हैं तो आपको यह व्रत हर साल रखना होता है। अगर किसी कारणवश आप व्रत छोड़ना चाहती हैं तो उद्यापन के बाद किसी और को व्रत दे सकती हैं।
2. हरतालिका तीज व्रत में महिलाएं 24 घंटे तक बिना अन्न और जल के रहती हैं। 
3. इन नियमों का पालन केवल सुहागन स्त्रियों के लिए ही अनिवार्य है।
4. हरतालिका तीज व्रत में माता पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
5. हरतालिका तीज व्रत में रात्रि जागरण अनिवार्य है, अर्थात रात्रि काल में भजन-कीर्तन करना होता है। किसी अन्य प्रकार से समय व्यतीत नहीं कर सकते।
6. सुहाग की पिटारी में श्रृंगार का सामान रखकर माता पार्वती को चढ़ाना जरूरी होता है।
7. भगवान शिव को धोती और अंगोछा अर्पित किया जाता है। पूजा के बाद सुहाग की साम्रगी को मंदिर के पुरोहित या गरीब को दान करना होता है।
8. अगले दिन शिव-पार्वती की पूजा करने और प्रसाद बांटने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। 

भूलकर भी न करें ये गलतियां

• इस व्रत के दौरान दिन में सोना वर्जित माना गया है।
• हरतालिका तीज पर व्रतधारी स्त्रियों को क्रोध करना वर्जित है।
• दूसरों के प्रति द्वेष की भावना घर रखने से निष्फल हो जाता है।
• इस दिन पति या दूसरों से वाद-विवाद करने पर व्रत खंडित हो जाता है।

शास्त्रों में स्पष्ट लेकर कि, गर्भवती बीमार एवं वृद्ध महिलाओं के लिए उपरोक्त कठिन नियम एवं व्रत अनिवार्य नहीं है। ऐसी महिलाओं को स्मरण मात्र से ही पूरे व्रत का फल प्राप्त हो जाता है। अर्थात यदि ऐसी महिलाएं हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती को अपने मन में स्मरण करती हैं, तो उनका व्रत पूर्ण माना जाता है। उन्हें उपवास, निर्जला एवं अन्य किसी भी नियम का पालन करना अनिवार्य नहीं होता। कुछ शास्त्रों में तो यहां तक लिखा है कि बीमार महिलाओं के लिए निर्जला उपवास वर्जित होते हैं।

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