मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में एडिशनल कलेक्टर (ADM) के पद पर पदस्थ राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री चंद्र भूषण प्रसाद को राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी छुपाने का दोषी घोषित किया गया है। दंड स्वरूप श्री चंद्र भूषण प्रसाद पर ₹25000 का जुर्माना लगाया गया है। इसके अतिरिक्त, राज्य सूचना आयुक्त ने ग्वालियर कमिश्नर निर्देशित किया है कि वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों को सूचना का अधिकार अधिनियम की ट्रेनिंग उपलब्ध कराएं।
RTI में यह जानकारी मांगी थी
घटनाक्रम के समय श्री चंद्र भूषण प्रसाद ग्वालियर में एसडीएम के पद पर पदस्थ थे। ग्वालियर के नारायण बांदिल ने सन 2020 में एक आरटीआई लगा करके कलेक्टर कार्यालय ग्वालियर से दो बिंदुओं की जानकारी चाही थी। एक तो उन्होंने अपर कलेक्टर द्वारा आयुक्त नगर पालिका निगम ग्वालियर को भेजे एक आदेश की छाया प्रति चाहिए थी वहीं दूसरे बिंदु में नगरी प्रशासन मंत्रालय भोपाल ग्वालियर कलेक्टर को दिए गए आदेश में क्या कार्रवाई हुई है उसकी जानकारी मांगी गई थी।
जानकारी दबाने के लिए सीनियर का आदेश भी किया अनसुना
RTI आवेदन कलेक्टर कार्यालय ग्वालियर में प्राप्त हुआ था जिस पर कार्रवाई करते हुए तत्कालीन अपर कलेक्टर ने बिंदु क्रमांक एक की जानकारी को उपलब्ध करा दिया और बिंदु क्रमांक 2 की जानकारी के लिए एसडीम झांसी रोड को उपलब्ध कराने के लिए कहा गया। पर एसडीम ने जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई। प्रथम अपीलीय अधिकारी अपर कलेक्टर ग्वालियर ने तीन दिन में चंद्र भूषण को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आदेशित किया था, इसके बावजूद जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। अपर कलेक्टर द्वारा दोबारा तत्कालीन एसडीएम चंद्र भूषण प्रसाद को दिनांक 6/10/2021 को 15 दिन में जानकारी उपलब्ध करवाने को कहा इसके बाद दिनांक 6/10/22 को भी जानकारी को उपलब्ध कराने के लिए कहा गया। इसके बावजूद भी जानकारी उपलब्ध नही कराई गई।
यह जानकारी को रोकने का अपराध है: राज्य सूचना आयुक्त
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने चंद्रभूषण की इस लापरवाही पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें कई बार उनके अधिकारियों ने जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आदेशित किया था, इसके बावजूद उनके द्वारा जानबूझकर जानकारी को उपलब्ध नहीं कराया गया। सिंह ने कहा कि एक बार मानवीय भूल की वजह से जानकारी को उपलब्ध कराने में हुई देरी की गलती को समझा जा सकता है। पर अपने अधिकारी के बार-बार स्मरण पत्र देने के भी बाद भी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती है तो यह साफ है कि अधिकारी जानबूझकर जानकारी को रोक रहे है।
जानकारी के अनुरोध को लेकर आरटीआई कानून में है यह प्रावधान
इस प्रकरण में, मूल RTI आवेदन अपर कलेक्टर के समक्ष लगा था और जुर्माना एसडीएम पर लगाने पर राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आरटीआई कानून की स्थिति को स्पष्ट किया है। सिंह ने अपने आदेश में कहा कि लोग सूचना अधिकारी किसी भी अन्य अधिकारी को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अनुरोध, सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 5 (4) के तहत कर सकते हैं। जिस अधिकारी से अनुरोध किया जाएगा वह अधिकारी जानकारी को उपलब्ध कराने के लिए अधिनियम की धारा 5 (5) के तहत बाध्य है।
सिंह ने आगे बताया कि जानकारी उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में जिस अधिकारी से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अनुरोध किया गया है उसके ऊपर ही अधिनियम की धारा 20 के तहत जुर्माने की कार्रवाई की जाती है।
सिंह: RTI के कारण अधिकारी कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं है
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने ग्वालियर के वर्तमान एसडीएम को नगरीय प्रशासन मंत्रालय के आदेश पर ग्वालियर कलेक्टर द्वारा की गई कार्रवाई की जानकारी RTI आवेदक को निशुल्क उपलब्ध कराने के आदेश दिए गए है। सिंह ने यहां यह स्पष्ट किया कि कोई आवेदक आरटीआई लगा करके किसी अधिकारी को कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, कार्रवाई करना ना करना उस अधिकारी का अधिकार क्षेत्र है। पर अधिकारी ने क्या कार्रवाई की है या नहीं की है, इसकी वस्तुस्थिति की जानकारी देने के लिए अधिकारी RTI के तहत बाध्य है।
सफ़ाई देने के लिए अधिकारी को मिले कई मौके
पिछ्ले साल से इस प्रकरण में सूचना आयोग के समक्ष पिछले साल 4/7/2022 से लगातार सुनवाई चल रही है। सूचना आयोग द्वारा लगातार अधिकारियों को अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए मौका दिया जाता रहा पर अधिकतर समय अधिकारी सूचना आयोग में सुनवाई में उपस्थित भी नहीं हुए। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने अंतिम आदेश में कहा कि चंद्रभूषण प्रसाद को इस प्रकरण में सफाई पेश करने का बार-बार मौका दिया गया पर वे ना तो सुनवाई मे उपस्थित हुए नाहीं जानकारी उपलब्ध कराने के संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत कर पाए। अब एक महीने का समय मुरैना के अपर कलेक्टर को जुर्माने की राशि आयोग में जमा करने के लिए दिया है।
सिंह ने चंद्रभूषण प्रसाद के कामकाज के तरीके पर आपत्ति दर्ज करते हुए अपने आदेश में कहा कि जो जानकारी 30 दिन में सामान्य रूप से उपलब्ध हो जानी चाहिए उसे चंद्रभूषण प्रसाद की लापरवाही के चलते के आदेश के बाद 3 साल बाद उपलब्ध कराया जा रहा है।
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