MP NEWS- तिलमिलाई डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे, मीडिया के सामने आई, कहा मुझे चुनाव लड़ना है

बैतूल जिले की आमला विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए संतान पालन अवकाश लेकर विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हुई डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे के सारे दांवपेच खाली चले गए। तिलमिलाई डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे ने अब स्पष्ट रूप से कहा है कि मुझे चुनाव लड़ना है। उल्लेखनीय है कि, सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा उनका इस्तीफा अस्वीकार कर दिया गया है। उनके खिलाफ विभागीय जांच चल रही है और यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं कि भोपाल समाचार डॉट कॉम ने 7 सितंबर को ही बता दिया था कि, किन गलतियों के कारण निशा बांगरे इस बार चुनाव नहीं लड़ पाएंगी। 

निशा बांगरे- ना प्रशासनिक अधिकारी, ना विधानसभा प्रत्याशी

हर तरफ से निराश होने के बाद श्रीमती निशा बांगरे ने बैतूल में दैनिक भास्कर के पत्रकार को बुलाकर बयान दिया है कि, सरकार मुझे चुनाव लड़ने से रोक रही है। जानबूझकर मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जा रहा है। भाजपा ने जिस तरह जज, शिक्षक और डॉक्टर को एक दिन में इस्तीफा दिलाकर प्रत्याशी घोषित कर दिया लेकिन मुझे मेरे संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। निशा से इस संबंध में गुरुवार को सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को लेटर भी लिखा है। यहां उल्लेख करना अनिवार्य है कि जिस जज, शिक्षक और डॉक्टर का जिक्र श्रीमती निशा बांगरे ने किया है, उनके खिलाफ कोई विभागीय जांच नहीं चल रही थी और फिर उन्हें सत्तापक्ष की नजदीकी का लाभ भी मिला। यदि विपक्षी पार्टी से चुनाव लड़ना है तो सत्ता पक्ष वाले ट्रीटमेंट की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

निशा बांगरे- ना प्रशासनिक अधिकारी, ना विधानसभा प्रत्याशी

उल्लेखनीय है कि, निशा बांगरे ने इस्तीफा देने के तत्काल बाद अपने नाम के आगे एक्स डिप्टी कलेक्टर लिख दिया था। जबकि सिविल सेवा संहिता के अनुसार जब तक इस्तीफा स्वीकार नहीं हो जाता तब तक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के लिए निर्धारित मर्यादा का पालन करना होता है। निशा बांगरे ने संतान पालन अवकाश लिया था, परंतु ना तो अपने मायके बालाघाट गई और ना ही अपनी ससुराल गुरुग्राम। बैतूल जिले के आमला में उनके दूर के रिश्तेदार भी नहीं रहते। स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि उन्होंने संतान पालन अवकाश का दुरुपयोग किया है। इसके बाद भी सरकार से पंगा लिया। अपने इस्तीफे को मुद्दा बना दिया। सरकार को घेरने की कोशिश की। फिर सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट चली गई, लेकिन कहते हैं ना कि राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी हो या भारतीय प्रशासनिक सेवा का, सिस्टम से पंगा लेकर मध्यप्रदेश में सफल नहीं हो सकता। निशा बांगरे पहला और अंतिम उदाहरण नहीं है। 

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