Case study for Administrative Service and political students
मध्य प्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने राज्य प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी एवं छतरपुर में पदस्थापना से संतान पालन अवकाश प्राप्त डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे के इस्तीफे को अमान्य घोषित कर दिया है। उल्लेख अनिवार्य है कि श्रीमती निशा बांगरे कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बैतूल जिले की आमला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहती हैं। इसकी तैयारियों के लिए इस्तीफा देने के बजाय उन्होंने संतान पालन अवकाश लिया और जब उनकी राजनीतिक गतिविधियां उजागर हुई तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
Nisha Bangre Dy Collector के विवाद की कहानी
श्रीमती निशा बांगरे मूल रूप से बालाघाट मध्य प्रदेश की रहने वाली हैं। उन्होंने श्री सुरेश अग्रवाल से विवाह किया। श्री अग्रवाल का घर गुरुग्राम हरियाणा में है। एमपीपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद श्रीमती निशा बांगरे की पहली पोस्टिंग बैतूल जिले की आमला विधानसभा में हुई थी। कर्तव्य निर्वहन के दौरान निशा क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हो गई थी।
लोकप्रियता चरम पर थी और सब कुछ ठीक चल रहा था
आमला के बाद निशा कुछ समय भोपाल और अंत में छतरपुर में पदस्थ थी। आमला से ट्रांसफर हो जाने के बाद भी निशा का आमला से संपर्क समाप्त नहीं हुआ था। आमला में अपनी लोकप्रियता से चलते हुए विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती थी। इसके लिए उनकी कांग्रेस पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता श्री कमलनाथ से बातचीत भी हुई। यहां तक सब कुछ ठीक था।
निशा बांगरे की सबसे पहली गलती
निशा की पोस्टिंग छतरपुर में थी और विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए उन्हें आमला जाना था। उनके पास बहुत सीधा विकल्प था कि वह अपने पद से इस्तीफा देकर चुनाव की तैयारियों के लिए चली जाती परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि संतान पालन अवकाश का लाभ ले लिया। यहीं से सारी चीजें गड़बड़ हमें शुरू हो गई।
आमला विधानसभा क्षेत्र ना तो उनका मायका है और ना ही उनका ससुराल, ना ही उनके पति श्री सुरेश अग्रवाल आमला में कोई नौकरी या व्यवसाय करते थे। आमला में जाकर वह तेजी से समाज के बीच सक्रिय हो गई। इस दौरान उन्होंने एक बड़े धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया। प्रोटोकॉल के अनुसार इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उन्होंने शासन से अनुमति मांगी। शासन को सब पता था इसलिए शासन स्तर पर उन्हें अनुमति नहीं दी गई।
निशा बांगरे की दूसरी गलती जिसने तनाव पैदा किया
श्रीमती निशा बांगरे को समझ में आ गया था कि अब छुट्टी लेकर चुनाव की तैयारी नहीं की जा सकती। इसलिए उन्होंने तत्काल कार्यक्रम को धार्मिक से बदलकर अपने गृह प्रवेश का कार्यक्रम बता दिया और शासन पर आरोप लगाया कि उन्हें उनके गृह प्रवेश के कार्यक्रम में शामिल नहीं होने दिया जा रहा है इसलिए वह इस्तीफा दे रही है। अपना इस्तीफा उन्होंने सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जबकि मध्य प्रदेश शासन के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के लिए यह अनुशासनहीनता है। कार्यक्रम अपने निर्धारित शेड्यूल के अनुसार हुआ। इसमें शामिल लोग और गतिविधियों ने स्पष्ट कर दिया कि यह ग्रह प्रवेश नहीं है।
निशा बांगरे की तीसरी गलती जिसने उनका सपना खतरे में डाल दिया
श्रीमती निशा बांगरे, ने यहां पर भी परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने का प्रयास नहीं किया बल्कि एक विपक्ष की नेता की तरह व्यवहार किया और राज्य प्रशासनिक सेवा कि अधिकारी रहते हुए शासन के खिलाफ बयान जारी किए। मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस और उनके सुपुत्र एवं बैतूल के कलेक्टर श्री अमनबीर सिंह बैंस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
निशा बांगरे की चौथी गलती, जो उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं होने देगी
उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ था परंतु उन्होंने खुद को पूर्व डिप्टी कलेक्टर प्रचारित करना शुरू कर दिया। कई ऐसे कार्यक्रमों में शामिल हुई जिसमें सरकार की निंदा की गई। मध्यप्रदेश शासन को नाकारा और निकम्मा बताया गया। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी यदि इस प्रकार के कार्यक्रमों में शामिल होता है तो यह एक दंडनीय अपराध है। इसके अलावा उन्होंने हाई कोर्ट ऑफ मध्य प्रदेश में अपने इस्तीफे पर डिसीजन को लेकर याचिका दाखिल कर दी। 1 महीने पहले हाईकोर्ट ने सामान्य प्रशासन विभाग को आदेश दिया कि वह श्रीमती निशा बांगरे के इस विषय पर 1 महीने के भीतर डिसीजन ले। हाईकोर्ट के निर्देशानुसार ठीक 1 महीना के अंतिम दिन में सामान्य प्रशासन विभाग ने उनका इस्तीफा अमान्य घोषित कर दिया है। सामान्य प्रशासन विभाग ने हाईकोर्ट को बताया कि उनके खिलाफ जांच चल रही है इसलिए उनका इस्तीफा अमान्य घोषित किया जाता है।
निशा बांगरे, इसलिए चुनाव नहीं लड़ पाएंगी
आज 7 सितंबर 2023 है। मध्य प्रदेश में आचार संहिता लागू होने के लिए सिर्फ एक महीना बाकी है। पद से इस्तीफा कोई जीवन का महत्वपूर्ण विषय नहीं है इसलिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अर्जेंट सुनवाई नहीं हो पाएगी। कुल मिलाकर एक छोटी सी गलती ने निशा बांगरे का चुनाव लड़ने का सपना तोड़ दिया है। अब वह कांग्रेस पार्टी के टिकट से क्या, निर्दलीय चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे क्योंकि यदि उन्होंने बैतूल कलेक्टर के समक्ष नामांकन पर्चा दाखिल किया तो वह भी रिजेक्ट हो जाएगा।
Moral of the story
शासकीय कर्मचारी को यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि वह सबसे पहले एक शासकीय कर्मचारी है। राज्य प्रशासनिक सेवा एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए यह और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह इस सेवा में होने के कारण भारत के आम नागरिकों को प्राप्त सभी अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते। वह शासन के प्रतिनिधि होते हैं और शासन की निंदा नहीं कर सकते। किसी नेता की तरह भाषण नहीं दे सकते, जनसंपर्क नहीं कर सकते और इस कहानी से अंतिम सबक मिलता है कि यदि विपक्षी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना है तो छुट्टी लेकर तैयारी करने की जरूरत नहीं है, इस्तीफा देकर तैयारी करनी चाहिए।
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