जैसा कि हम सबको पता है की माननीय मुख्यमंत्रीजी ने संविदा कर्मचारियों के लिए जो घोषणाएँ की थी। उनके परिपालन में अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सभी कर्मचारियों के लिए सातवें वेतनमान के अनुसार अपने पदों के समकक्ष वेतन का निर्धारण कर दिया गया है, और यही से विवाद भी शुरू हो चुका है। ग़ौर करने वाली बात ये है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में डॉक्टर और उन्हीं से संबंधित स्पेशलिस्ट पदों के लिए जो वेतनमान निर्धारण किया गया है उसमें किसी भी तरह की कोई कटौती नहीं की गई है।
डाटा ऑपरेटर और सोशल वर्कर की सैलरी ड्राइवर के बराबर कर दी
समस्या शायद डेटा एंट्री ऑपरेटर एवं मेडिकल सोशल वर्कर के लिए की गई। वेतन निर्धारण में ही समस्या पैदा हुई, मेडिकल सोशल वर्कर का पद मध्य प्रदेश के गजट के अनुसार तृतीय श्रेणी का पद है, जिसका वेतनमान 32,800 और level 8 है लेकिन हमारे प्रकांड अधिकारियों के द्वारा इस पद को लेवल 4 जिसमे 19500 का वेतन निर्धारण किया गया है। ग़ौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में ड्राइवर का वेतन भी यही है।
कई सालों की मेहनत के बाद मुख्यमंत्री जी ने संविदा कर्मचारियों के लिए एक सम्मानपूर्वक वेतन का निर्धारण करने का निश्चय किया लेकिन हमारे अधिकारियों द्वारा इस बात को हज़म नहीं किया गया और उन्होंने अपनी नीयत के अनुसार वही किया जो उन्हें करना था।
मेरा सवाल है कि ऐसा क्यों होता है कि निचले पदों पर काम करने वाले कर्मियों के लिए शासन प्रशासन में इस तरह का रवैया देखा जाता है। अगर आप डेटा एंट्री ऑपरेटर या मेडिकल सोशल वर्कर पदों का निर्धारण भी इनकी समकक्ष पदों के निर्धारण बराबर ही करते तो क्या बिगड़ जाता। क्या आपको ये हमेशा अच्छा लगता है कि हर बात का निर्धारण अदालत में हो या छोटे-छोटे कर्मचारी अपनी छोटी-छोटी माँगों के लिए आपके सामने गिड़गिड़ाते रहे।
ऐसा करवाने से आपको सुकून मिलता है क्या
जो संविदा कर्मचारी 2 महीने से ये आस लगा रहे थे कि शायद अब उन्हें सम्मान पूर्वक जीवन जीने का मौक़ा मिलेगा लेकिन हमारी अधिकारियों द्वारा उनकी ये सपने पर भी पानी फेर दिया गया। अब ये शोषित कर्मचारी बिचारे फिर वही पुराना रवैया अपनाएंगे। ज्ञापन पत्र सौंपेंगी मिन्नतें करेंगे और अपने वाजिब हक़ के लिए उच्च अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाते रहेंगे।
ऐसा करवाने से आपको सुकून मिलता है क्या।
ऐसा करवाने से आप को अपने पद की गरिमा का आभास हो जाता है।
ये बात सोच से परे है। ये पत्र से ज़्यादा संविदा कर्मचारियों की हताशा है जो इन शब्दों के माध्यम से निकल रही है। मेरा फिर एक बार मुख्यमंत्रीजी से निवेदन है की आपके अधिकारियों ने जो इस तरह का अमानवीय कृत्य किया है उसको संज्ञान में लेते हुए सभी संविदा कर्मचारियों को अपना वाजिब हक़ दिलाने की कृपा करें।
✒सभी शोषित बंचित संविदा कर्मचारियों की ओर से रानू पाठक
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