कई बार कुछ शरारती लोग किसी पुलिस अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट को दुर्भावना पूर्वक झूठी जानकारी दे देते हैं जिसके आधार पर उपरोक्त अधिकारियों अथवा मजिस्ट्रेट द्वारा किसी व्यक्ति, संपत्ति अथवा कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर दी जाती है। यदि कार्रवाई से पहले जानकारी के गलत होने का पता चल जाए तो आईपीसी की धारा 177 के तहत मामला दर्ज होता है लेकिन झूठी जानकारी के आधार पर कार्रवाई हो जाने के बाद खुलासा होने पर धारा बदल जाती है। पढ़िए:-
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 182 की परिभाषा
जो कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक या मजिस्ट्रेट को जानबूझकर कर ऐसी जानकारी देगा जो झूठी है, जानकारी या सूचना के उपरांत अधिकारी करवाई कर दे और उसके बाद पता चले की किसी व्यक्ति, संपत्ति या कर्मचारी पर की गई कार्रवाई गलत थी, तब झूठी सूचना या जानकारी देने वाले व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 182 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा एवं न्यायालय द्वारा उसे दंडित किया जाएगा।
Indian Penal Code, 1860 section 179 punishment
यह अपराध असंज्ञेय एवं ज़मानतीय होते है। इनकी सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है सजा- इस अपराध के लिए अधिकतम छ: माह की कारावास या जुर्माना या दिनों से दण्डित किया जा सकता है।
नोट :- ध्यान रखने योग्य बात भारतीय दण्ड संहिता की धारा 177 के अंतर्गत झूठी सूचना देने मात्र को अपराध माना है एवं भारतीय दंड संहिता की धारा 182 के अंतर्गत झूठी सूचना पर कार्रवाई करने पर अपराध माना है। इसीलिए दोनों धाराओं में दंड का प्रावधान अलग-अलग है। यहां क्लिक करके आईपीसी 177 पढ़ सकते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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