IPC 196 - कोर्ट में फर्जी डॉक्यूमेंट या मिथ्या साक्ष्य प्रस्तुत करना, पढ़िए कौन सी धारा और कितनी सजा

Bhopal Samachar

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कई बार लोग कोर्ट में सजा से बचने के लिए अथवा अपने विरोधी को सजा दिलाने के लिए, फर्जी अथवा नकली डॉक्यूमेंट प्रस्तुत कर देते हैं। उपस्थिति रजिस्टर से लेकर किसी यात्री बस के टिकट तक, हजारों प्रकार की दस्तावेज फर्जी बनाए जाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस प्रकार के लोगों के खिलाफ न केवल मामला दर्ज होता है बल्कि कठोर दंड का प्रावधान भी है।

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 196 की परिभाषा 

जो कोई व्यक्ति किसी साक्ष्य को, जिसका मिथ्या होना या गढ़ा होना (False fabricated) वह जानता है, सच्चे या असली साक्ष्य (Genuine evidence) के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग (Corrupt use) में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह आईपीसी की धारा 196 के तहत अपराधी घोषित किया जाएगा और दंडित किया जाएगा।
सरल हिंदी में- यदि कोई व्यक्ति जानता है कि न्यायालय में प्रस्तुत किया जाने वाला कोई डॉक्यूमेंट फर्जी है, अथवा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत की गई कोई भी चीज गलत है और न्यायालय में विचाराधीन मामले को प्रभावित कर सकती है। इसके बाद भी न्यायालय में प्रस्तुत कर देगा तो ऐसा व्यक्ति आईपीसी की धारा 196 के तहत अपराधी घोषित किया जाएगा और दंडित किया जाएगा। 

भारतीय दण्ड संहिता , 1860 की धारा 196 दण्ड का प्रावधान

इस धारा के अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय एवं अजमानतीय दिनों प्रकार के हो सकते हैं, इस अपराध की सुनवाई उसी न्यायालय में होगी जिस न्यायालय में व्यक्ति झूठे साक्ष्यों को प्रस्तुत कर रहा है अर्थात विचारणीय न्यायालय। इस अपराध की सजा वहीं होगी जिसमें बचने के लिए व्यक्ति ने झूठे साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं अर्थात किसी निर्दोष व्यक्ति को चोरी में फंसाने के लिए झूठे साक्ष्य दिए है तो इस धारा के आरोपी को चोरी की सजा से दण्डित किया जाएगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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