मध्य प्रदेश में बड़ी अजीब सी स्थिति बन गई है। पॉलिटिकल पार्टियों के नाम तो आज भी भाजपा और कांग्रेस ही है परंतु नेताओं के चेहरे देखने के बाद समझ में नहीं आता कि कौन सी कांग्रेस है और कौन सी भाजपा। विज्ञापन पोस्ट में दिखाई देता है कि सीधा मुकाबला कमलनाथ और शिवराज सिंह के बीच में है परंतु स्थिति यह है कि दोनों घबराए हुए हैं। दोनों मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं परंतु विधानसभा चुनाव लड़ना नहीं चाहते। दोनों को हार का डर सता रहा है।
शिवराज सिंह चौहान- पिछले 1 महीने में तीसरी बार डरे हुए दिखे
शिवराज सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी के ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के सबसे सक्रिय नेताओं में से एक है। कहते हैं कि भाजपा में उनका कोई तोड़ नहीं है। 2018 का विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो उसे पूरी प्रक्रिया में शिवराज सिंह का कोई खास योगदान नहीं था लेकिन फिर भी अंतिम समय में तेजी से सक्रिय हुए और मुख्यमंत्री बन बैठे। उनके भाषणों और बातों में गजब का कॉन्फिडेंस सुनाई और दिखाई देता है परंतु पिछले एक महीने में तीन-चार बार डरे और सहमे हुए से दिखाई दे रहे हैं।
कैबिनेट मीटिंग से पहले जो भाषण दिया वह कुछ इस प्रकार का था मानो यह अंतिम है। इसके बाद सीहोर में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब मैं नहीं रहूंगा तो बहुत याद आऊंगा। आज बुधनी में अपने मतदाताओं से पूछा कि चुनाव लडूं या नहीं। पार्टी में एक चर्चा यह भी है कि शिवराज सिंह चौहान इस बार बुधनी नहीं बल्कि विदिशा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। कुछ लोगों का कहना है कि, शिवराज सिंह इस बार प्रदेश की राजनीति से सम्मानपूर्वक केंद्र की राजनीति में चले जाएंगे, जबकि कुछ अन्य लोगों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान किसी भी कीमत पर मध्य प्रदेश नहीं छोड़ेंगे। यदि भाजपा को बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ही बनेंगे।
सच जो भी हो परंतु फिलहाल सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि, शिवराज सिंह चौहान का साउंड काफी बदल लिया है।
कमलनाथ- बिना चुनाव लड़े मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं
मध्य प्रदेश की राजनीति में कमलनाथ के किस्से अपने आप में मजेदार होते हैं। वह चाहते हैं कि पूरे प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के नेता दौरे पर जाएं। जो जनता सरकार से नाराज है, उसका आक्रोश और ज्यादा बढ़ा दें। आग में घी डालें और यदि कहीं पर शांति है तो लोगों के दिलों में सरकार के खिलाफ आग लगाएं। इसके कारण लोग कांग्रेस को वोट देंगे और जब कांग्रेस को वोट मिलेंगे तो वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे।
जहां तक विधानसभा चुनाव लड़ने की बात है तो कमलनाथ पिछले 6 महीने से डरे हुए हैं। अपने छिंदवाड़ा से चुनाव नहीं लड़ना चाहते। उन्हें छिंदवाड़ा की जनता पर विश्वास नहीं है। बागेश्वर वाले और प्रदीप मिश्रा जी दोनों को बुला लिया लेकिन फिर भी कॉन्फिडेंस नहीं आ रहा है। बार-बार एक डर सता रहा है कि यदि अपने ही छिंदवाड़ा से हार गया, तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाऊंगा।
यही कारण है कि कोई ना कोई बहाना बनाकर, चुनाव लड़ने से पीछे हटने की कोशिश कर रहे हैं।
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