जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश में स्पष्ट किया है कि कार्य स्थल पर महिला कर्मचारियों को प्रताड़ित किए जाने के मामले की अपील विभागीय स्तर पर नहीं हो सकती। जांच कमेटी की रिपोर्ट को केवल ट्रिब्यूनल अथवा कोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश जस्टिस सुजय पाल ने उसे विभागीय आदेश को निरस्त कर दिया जो अपील के बाद जारी किया गया था।
यह मामला मध्य प्रदेश पुलिस विभाग में पदस्थ मुकेश खम्परिया की ओर से दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि अगस्त 2016 से मार्च 2017 तक वे नरसिंहपुर जिले के गाडरवाडा थाने में SHO के पद पर पदस्थ थे। उनके अधीनस्थ कार्यरत महिला SI ने उनके खिलाफ कार्यस्थल में यौन शोषण का आरोप लगाते हुए शिकायत की थी। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 में दिए गए प्रविधानों के तहत जांच के लिए कमेटी गठित की गयी। कमेटी ने उनके पक्ष में रिपोर्ट पेश की, जिसके खिलाफ महिला SI ने पुलिस मुख्यालय में अभ्यावेदन दिया।
कार्य स्थल पर महिला कर्मचारी प्रताड़ना अधिनियम
याचिका में कहा गया कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत घटना के तीन माह के अंदर शिकायत करना आवश्यक है। पुलिस मुख्यालय ने जून 2018 में ADGP को जांच के निर्देश दिए। उनके खिलाफ शिकायत मार्च 2017 में की गई और घटना की तारीख अक्टूबर 2016 बताई गई। जबकि नियमानुसार जांच कमेटी की रिपोर्ट को सिर्फ ट्रिब्यूनल तथा कोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है।
एकलपीठ ने जांच को निरस्त करते हुए उक्त आदेश जारी किए
महिला SI उनके अधीनस्थ कार्यरत थी और कार्य में लापरवाही करती थी। उन्होंने महिला एसआई को चेतवानी देते हुए अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की थी। जिसके कारण उनके खिलाफ महिला सब इंस्पेक्टर ने आरोप लगाये थे। एकलपीठ ने महिला उप निरीक्षक की अपील पर विभागीय स्तर में की गई जांच को निरस्त करते हुए उक्त आदेश जारी किए।
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