खबरें तो लगातार आ रही थी परंतु पूरी विधानसभा क्षेत्र में किसी को भरोसा ना था। कल रात जब विधायक यशोधरा राजे सिंधिया ने Good by कहा, तब स्थिति थोड़ी गंभीर हुई। आज सुबह से माहौल बदला हुआ है, जब लोगों को पता चला कि, यशोधरा राजे सिंधिया ने शिवपुरी को Good by यानी अलविदा कह दिया है। शिवपुरी से अपना रिश्ता तोड़ लिया है। शिवपुरी के प्रति अपनी जिम्मेदारी से भाग गई है। विजयाराजे की बेटी इतनी कमजोर निकलेगी, किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
विजयाराजे का संघर्ष संक्षिप्त में
- आजादी के बाद महाराजा ग्वालियर का झुकाव हिंदूवादी नेताओं के प्रति था परंतु तत्कालीन कांग्रेस नेताओं ने दबाव बनाया कि, महाराजा ग्वालियर को कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना होगा अन्यथा की स्थिति में अहित हो सकता है।
- महारानी विजयाराजे ने महाराज का स्वाभिमान बढ़ाने के लिए, आत्म सम्मान से समझौता किया और कांग्रेस पार्टी के टिकट पर खुद चुनाव लड़ लिया।
- कहानी लंबी है लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब भारत की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी, महारानी विजयाराजे के डर के कारण एक से अधिक लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ रही थी।
- समय बदला, इंदिरा गांधी ताकतवर हुई और आपातकाल लगा। विपक्ष की नेता विजयाराजे के सामने विकल्प रखा गया कि या तो कांग्रेस में शामिल हो जाए या फिर जेल जाने के लिए तैयार रहें। विजयाराजे ने स्वाभिमान के साथ जेल जाना पसंद किया।
- भारतीय जनता पार्टी और भारत में श्री राम मंदिर आंदोलन को मजबूत करने के लिए महाराज द्वारा दी गई अंगूठी भी पार्टी को दान कर दी।
- इतना त्याग करने के बाद भी पार्टी के अंदर उनके विरोधियों की कमी नहीं थी।
- जब भाजपा की वरिष्ठ नेता विजयाराजे को राजमाता के नाम से सम्मान पूर्वक पुकारा जाने लगा था, तब भी भाजपा में एक वर्ग ऐसा भी था जो उन्हें तानाशाह कहता था।
- राजमाता, परेशान भी हुई, उन पर लांछन लगाए गए, बीमार भी हुई, एक चुनाव तो उन्होंने गंभीर बीमारी की हालत में बिस्तर पर इलाज करते हुए लड़ा।
राजमाता की उत्तराधिकारी इतनी कमजोर
यशोधरा राजे ने कहा है कि, 4 बार कोरोना हो चुका है। अब मैं 21 साल की नहीं हूं। दोनों लाइनों में कोई दम नहीं है। यदि स्वास्थ्य लाभ लेना था तो उसी समय लेना चाहिए था और राजनीति में कोई भी हमेशा 21 साल का नहीं रहता। उम्र के साथ अनुभव और सम्मान भी बढ़ता है। आज की तारीख में स्थिति यह होनी चाहिए थी कि, यशोधरा राजे अपने समर्थकों से कहती कि, मैं चुनाव प्रचार नहीं कर पाऊंगी, और समर्थक गारंटी लेते कि, आप केवल नामांकन फार्म जमा कीजिए। चुनाव जिताने की गारंटी हमारी है। जैसा राजमाता से कहा गया था। यह सब कुछ राजमाता को विरासत में नहीं मिला था, उन्होंने खुद कमाया था।
परिवार में ऊंच-नीच चलती रहती है। विरोध भी होता है और कई बार तो अपने ही आंखे दिखाने लगते हैं, लेकिन ऐसा होने पर घर के बड़े अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागते।