Legal general knowledge and law study notes
बहुत से मामले हमे वर्तमान मे देखने को मिलते हैं थाना प्रभारी किसी आरोपी को गंभीर अपराध के दण्ड से बचाने के लिए, ऐसी धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाता है, जिसमें न्यूनतम सजा का प्रावधान हो। भारत में हर रोज हजारों लोग इस प्रकार की शिकायत करते हैं। लूट के मामले को चोरी के तहत दर्ज किया गया। गंभीर चोट को सामान्य और कई बार तो बलात्कार को छेड़छाड़ के तहत दर्ज किए जाने की शिकायत मिलती है। आईए जानते हैं FIR में धाराओं में परिवर्तन करना कितना गंभीर अपराध होता है और टीआई के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के लिए आईपीसी की कौन सी धारा में प्रावधान है।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 218 की परिभाषा
जो कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को दण्ड से बचाने या संपत्ति समपहण से बचाने के लिए किसी अभिलेख में या किसी दस्तावेज की रचना में जानते हुए अशुद्ध (गलत) लेख लिखेगा वह व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की धारा 218 के अंतर्गत दोषी होगा।
Indian Penal Code, 1860 section 218 Punishment
इस धारा के अपराध संज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं इनकी सुनवाई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है सजा:- इस धारा के अपराध के लिए अधिकतम तीन वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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