दीपावली पर्व आ गया है और मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत संचालित शालाओं में कार्य करने वाले व्यावसायिक शिक्षकों का वेतन का 5 महीने से अत पता नहीं है। मध्यप्रदेश के व्यावसायिक पप्रशिक्षकों की हालत दयनीय हो चली है। इस विषय को फिर भी शासन प्रशासन गम्भीरता से लेने को तैयार नहीं। व्यावसायिक प्रशिक्षक अब शोषित महसूस कर रहें हैं कुछ व्यवसायिक प्रशिक्षकों ने तो विद्यालय में आवेदन देकर सूचना दी है कि अब विद्यालय आने जाने तक ला पैसा नहीं है जिसके कारण अब वो विद्यालय आने में असमर्थ हैं।
आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय से निवेदन किया था
व्यावसायिक प्रशिक्षकों के संगठन नवीन व्यावसायिक शिक्षा प्रशिक्षक महासंघ मप्र (NVETA) ने आयुक्त लोक शिक्षण संचनालय भोपाल को भी विगत दिनों इनकी परेशानियों से पत्र के माध्यम से अवगत कराया था। जिसमें उल्लेख किया था कि विगत प्रत्येक वर्ष में लगभग समस्त कर्मियों की वेतन दिवाली के पर्व पर समय पर प्रदान करने हेतु आदेश जारी हुए फिर भी व्यावसायिक प्रशिक्षकों को इससे वंचित रखा जाता है जो कि अमानवीय कृत्य है। इनके द्वारा निवेदन किया गया कि विगत 5 माह का भुगतान प्रदान किया जाए। फिर भी प्रशासन ने इनकी अब तक सुध तक नही ली। ऐसे में व्यावसायिक प्रशिक्षकों के मन मे काफी रोष है। वे आय दिन कम्पनी और विभाग से समय लर भुगतान देने हेतु सैंकड़ो गुहार लगा रहे हैं लेकिन जिम्मेदार अधिकारी वर्ग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुये भाग खड़ा होता है।
हाल ही में वेतन समय पर न मिलने पर और शाला के स्टाफ से प्रताड़ित होकर व्यावसायिक शिक्षक स्व आकाश यादव को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। क्या शासन की यही मंशा है की सभी आत्महत्या कर ले या इसे ही सूखे सूखे अपने त्योहारों को मनाये जिसमे परिवार के सभी लोग खुशियों की प्यास में गम का सुखा घूँट पी कर रह जाये। ये पूछ रहे हैं कि क्या यही सबका साथ सबका विश्वास ?
त्योहारों में परिवार के सभी लोगो की अपनी एक उमंग और चाहत होती है पर आउटसोर्स कर्मचारियों को प्रशासन मानव समझता ही नहीं इनके लिए कोई मानव अधिकार है ही नहीं स्व आकाश यादव के लिए मानव अधिकार वालो ने क्या किया ? सोचिये जरा कैसा लगता है जब एक कार्यालय में कार्य करने वाले कर्मचारी को दीपावली में बोनस मिलता है और उसी के साथ काम करने वाले आउटसोर्स कर्मचारी को पिछले पांच महीने का वेतन भी नहीं ? एक तरफ कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में व्यावसायिक प्रशिक्षको को नियमित करने की मांग रखी है और दूसरी तरफ इनके विगत वर्षों से अपना ही वेतन समय पर मिलने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
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