जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश ने जनजातीय कार्य विभाग, मध्य प्रदेश में नवनियुक्त 129 शिक्षकों की नियुक्ति स्कूल शिक्षा विभाग में दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए हैं। इससे पहले 140 शिक्षकों के लिए यही आदेश जारी हुए थे।
स्कूल शिक्षा के लिए परीक्षा दी थी, नियुक्ति ट्राइबल में हो गई
उल्लेखनीय है कि शासन की शिक्षक नियुक्ति की नीति के अनुसार, मध्य प्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड भोपाल द्वारा संयुक्त पात्रता परीक्षा वर्ष 2018 में आयोजित की गई थी। पहले स्कूल शिक्षा में नियुक्ति हेतु रूल बुक जारी की गई। तत्पश्चात, अनुपूरक नियम द्वारा, स्कूल शिक्षा हेतु प्रस्तुत आवेदन, जनजातीय विभाग हेतु स्वतः मान लिए गए थे।
पात्रता परीक्षा 2018 के अनुक्रम में ज्वाइंट चयन प्रक्रिया/काउंसिलिंग आयोजित नही की जाकर, ट्राइबल द्वारा, शिक्षक नियुक्ति हेतु पृथक काउंसिलिंग आयोजित की गई। मेरिट के आधार पर, नियुक्ति आदिवासी विकास के अधीन दी गई। तत्पश्चात, स्कूल शिक्षा द्वारा भी काउंसलिंग आयोजित की गई। ट्राइबल में नियुक्त शिक्षकों को भी काउंसलिंग प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर, आयुक्त लोक शिक्षण द्वारा दिया गया। लेकिन स्कूल चयन के समय , उन्हे आदिवासी विकास में पूर्व नियुक्ति के आधार पर, च्वाइस फिलिंग से वंचित कर दिया गया।
लोक शिक्षण संचालनालय के विवादित नियम से उपजा विवाद
आदिवासी विकास विभाग में चयनित और नियुक्त शिक्षकों को स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्ति एवम चॉइस फिलिंग से वंचित या अपात्र किए जाने के बाद विवेक राठौर एवम 129 अन्य उच्च माध्यमिक/माध्यमिक शिक्षकों ने उच्च न्यायालय जबलपुर में स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश के विरूद्ध रिट याचिका दायर की थी। शिक्षको की ओर से पैरोकार उच्च न्यायालय जबलपुर के वकील श्री अमित चतुर्वेदी ने सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय को बताया कि दोनो विभागों के भर्ती नियमों एवं अन्य संशोधित भर्ती नियमों एवम चयन प्रक्रिया को शासित करने वाले आदेशों में ऐसा कोई प्रतिबंध नही है कि आदिवासी विकास में नियुक्त शिक्षक, स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्ति हेतु पात्र नही है। अतः शासन का यह कार्य संविधान के अनुच्छेद 14 एवम 16 उल्लंघन है। आदिवासी विकास में नियुक्त शिक्षक, स्कूल शिक्षा के विभागीय आदेशों के पालन में ही चयन प्रक्रिया में शामिल हुए थे। ज्वाइंट चयन प्रकिया से वंचित किए जाने के कारण, विसंगति एवम भेदभाव उत्पन्न हुआ है।
आदिवासी विकास में नियुक्त शिक्षकों को, स्कूल शिक्षा में नियुक्ति प्राप्त करने हेतु, वैध पात्र होने के उपरांत भी, स्कूल शिक्षा में नियुक्ति हेतु अपात्र करना, एक कृत्रिम वर्ग का निर्माण करना है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो कृत्रिम वर्गीकरण को निषिद्ध करता है।
मेरिट सूची में उच्च स्थान प्राप्ति के बाद, ऐसा कोई नियम नहीं है, जिससे आदिवासी विकास में नियुक्त शिक्षक, स्कूल शिक्षा में नियुक्ति से वंचित किए जा सकें।
सुनवाई के बाद, उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने शासन से जवाब तलब करते हुए, याचिकाकर्ता शिक्षकों को चॉइस फिलिंग में भाग दिए जाने का अंतरिम आदेश माह फरवरी/मार्च में पारित किया था परंतु, समान केस खारिज हो जाने के कारण, कोर्ट द्वारा पारित आदेश का पालन नहीं हो सका था। सिंगल बेच द्वारा खारिज आदेश को, युगल पीठ/डबल बेंच में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट की डबल बेंच द्वारा द्वारा, शासन के पक्ष में किए गए आदेश को स्टे कर दिया गया था। अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी , उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा, उच्च न्यायालय जबलपुर की सिंगल बेंच का ध्यान, डबल बेंच द्वारा पारित आदेश की ओर आकर्षित किया ।
सुनवाई के बाद कोर्ट द्वारा, डबल बेंच के आदेश के प्रकाश में पुनः अंतरिम आदेश जारी करते हुए, आयुक्त लोक शिक्षण को आदेश दिया गया है कि, ट्राइबल में नियुक्त एवम स्कूल शिक्षा में चयनित शिक्षकों को स्कूल शिक्षा की शालाओं में चॉइस फीलिंग का अवसर दिया जावे। साथ ही यह आदेश दिया है की कोर्ट की अनुमति के बिना परिणाम घोषित नही किए जावे। कोर्ट का आदेश सिर्फ याचिका कर्ताओं के लिए है।
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