उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि फरियादी अनुसूचित जाति जनजाति का है और आरोपी अनारक्षित जाति का है तो ऐसी स्थिति में अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज करना अनिवार्य नहीं है। एससी एसटी एक्ट के तहत केवल तभी मामला दर्ज किया जाना चाहिए जब जातिगत आधार पर अपमानित किए जाने का इरादा स्पष्ट हो जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीमा भारद्वाज की अपील पर गाजियाबाद के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया। माननीय उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 504, 506 एवं अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1979 की धारा 3(2) वीए के तहत पारित किया गया आदेश सही नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय को बताया गया कि गाजियाबाद के कवि नगर थाने में मामला दर्ज किया गया था। विद्वान न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने कहा कि जब तक जाति के आधार पर अपमानित किए जाने का इरादा स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक एससी एसटी एक्ट का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि पूरे भारत में जाति जनजाति अधिनियम के तहत हर रोज ऐसे कई मामले दर्ज होते हैं जिसमें फरियादी जातिवाद की शिकायत नहीं करता फिर भी पुलिस अधिकारी एससी एसटी एक्ट की धारा का उल्लेख कर देते हैं। मध्य प्रदेश में दो अज्ञात व्यक्तियों के बीच हुए रोड एक्सीडेंट में पुलिस ने आरोपी के खिलाफ एससी एसटी एक्ट के तहत मामला इसलिए दर्ज कर लिया था क्योंकि घायल होने वाला व्यक्ति अनुसूचित जाति का था।
न्यायालय में ट्रायल के दौरान पुलिस अधिकारी ने स्पष्ट किया था कि उसे वरिष्ठ अधिकारियों ने निर्देशित किया है कि यदि पीड़ित व्यक्ति अनुसूचित जाति अथवा जनजाति का है तो अनिवार्य रूप से एससी एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जाए।
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