भारत की राजधानी दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि, अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी के माध्यम से बच्चे पैदा करने की अनुमति क्यों नहीं दी गई है। आम बोलचाल की भाषा में सरोगेसी को किराए की कोख कहा जाता है। इसके तहत एक महिला, दूसरी ऐसी महिला की मदद करती है जो किसी मेडिकल रीजन से बच्चे पैदा नहीं कर सकती। ऐसी महिला का भ्रूण, सरोगेसी मदर की कोख में ट्रांसफर कर दिया जाता है और जन्म के बाद वह बच्चा उसके जैविक माता-पिता को दे दिया जाता है।
सरोगेसी कानून विवाद, संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन
भारत में स्थापित सरोगेसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। सरोगेसी कानून के कारण एकल अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी के माध्यम से बच्चे पैदा करने की अनुमति नहीं है। याचिकाकर्ता और पेशे से वकील नेहा नागपाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल ने कहा, मौजूदा सरोगेसी नियमों में बड़े पैमाने पर कमियां हैं। इसके कारण संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत अधिकार का उल्लंघन) का उल्लंघन हो रहा है।
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, एकल अविवाहित महिलाएं सरोगेसी का विकल्प चुन सकती हैं या नहीं, यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की ही एक बड़ी पीठ के समक्ष लंबित हैं। इस पर वकील सौरभ किरपाल ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई की जरूरत है क्योंकि इन कानूनी प्रावधानों से एक बड़ा संवैधानिक सवाल भी जुड़ा हुआ है।
दोनों पक्षों की संक्षिप्त दलीलों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और याचिका पर उससे जवाब मांगा।
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