Legal general knowledge and law study notes
पृथ्वी पर पेयजल प्रकृति की संपत्ति है और इसे किसी भी प्रकार से प्रदूषित करना, जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत एक अपराध माना जाता है। इस अधिनियम में जल के संरक्षण की भी बात कही गई है अर्थात कोई व्यक्ति जल को प्रदूषित करता है तो उक्त अधिनियम के अंतर्गत सिविल वाद लगाया जा सकता है लेकिन अगर कोई व्यक्ति पीने का पानी खराब करता है तो उसके खिलाफ एक संज्ञेय आपराधिक मामला भी बन सकता है जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 277 की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी सार्वजनिक जल-स्त्रोत,जैसे कुए, कुंड, जलाशय आदि को जो लोगों के लिए पीने का पानी के लिए हो उसे कलुषित या खराब करेगा जिसके कारण उसका उपयोग कम हो जाए तब उस पीने के पानी को खराब करने वाला व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की धारा 277 का दोषी होगा I
Indian Penal Code, 1860 section 276 Punishment
इस धारा के अपराध संज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं इनकी सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। इस धारा के अपराध के लिए अधिकतम तीन माह कारावास या पाँच सौ रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
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