मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित इस स्पेशल कोर्ट ने पूर्व डिप्टी कलेक्टर स्वर्गीय हुकुमचंद सोनी, उनकी पत्नी सुषमा सोनी, बेटी अंजलि, सोनालिका, प्रीति, सरिता, प्रमिला (मृत) और रेखा वर्मा पति भरत कुमार वर्मा (सोनालिका की सास एवं डिप्टी कलेक्टर की समधन) और दामाद अजय वर्मा की संपत्ति राजसात करने के आदेश दिए हैं। लोकायुक्त की जांच में पाया गया कि, डिप्टी कलेक्टर ने भ्रष्टाचार की रकम से अपने परिवार के नाम संपत्ति खरीदी। यहां तक की बेटी के ससुराल वालों को भी भ्रष्टाचार की रकम से दहेज दिया। समधन और दामाद के नाम संपत्ति खरीदी। इस मामले की जांच प्रक्रिया के दौरान ही हुकुमचंद सोनी का निधन हो गया था। वह शाजापुर में डिप्टी कलेक्टर के पद पर पदस्थ थे।
भ्रष्ट आचरण मृत्यु के बाद भी प्रभावित करता है
कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए टिप्पणी की है कि भ्रष्टाचार समाज और परिवार के लिए खतरनाक है। यह भ्रष्ट आचरण प्रभावित व्यक्ति के जीवन पर्यंत और मृत्यु के बाद भी उसके कार्यों से दिखाई देता है। ऐसा कृत्य निंदनीय होकर उदारता के योग्य नहीं होता है। जैसे मछली पानी में रहते हुए कब पानी पीती है या नहीं पीती है, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। उसी प्रकार सरकारी सेवक सेवा के दौरान कब अपने पद का दुरूपयोग कर सकता है या नहीं इसका अंदाजा लगाना भी कठिन होता है।
भ्रष्टाचार की रकम से बच्चों की शादी और दहेज भी दिया
लोक अभियोजक पद्मा जैन ने बताया कि लोकायुक्त संगठन उज्जैन 2011 में डिप्टी कलेक्टर हुकुमचंद सोनी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया था, जो विचाराधीन है। इसमें सोनी द्वारा अर्जित 1.77 करोड़ रु. की राशि मध्यप्रदेश शासन के पक्ष में करने के लिए एक आवेदन पत्र धारा 13(1) के तहत स्पेशल कोर्ट में पेश किया गया था। इस शिकायत का उज्जैन डीएसपी ओपी सागोरिया द्वारा सत्यापन कराया तो मामला सही पाया। इसमें पाया गया कि हुकुमचंद सोनी द्वारा अपने अधिकारों का अवैध लाभ अर्जित कर पत्नी व बेटियों के नाम पर मकान, प्लॉट, वाहन आदि खरीदकर लगातार भ्रष्टाचार किया गया। इस तरह अपने आय के ज्ञात स्त्रोतों से अधिक की संपत्ति एकत्र की गई।
निम्न श्रेणी लिपिक से डिप्टी कलेक्टर तक
इसकी सूचना मुख्यालय भोपाल भेजकर स्पेशल कोर्ट शाजापुर से 20 जुलाई 2011 को सर्च वारंट प्राप्त कर छापा मारा गया। इसके साथ ही इन सभी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धाराओं में केस दर्ज कर मामला जांच में लिया गया। जांच में पता चला कि आरोपी हुकुमचंद सोनी के पहली नियुक्ति निम्न श्रेणी लिपिक के रूप में 19 नवम्बर 1975 को तराना में हुई थी। इसके बाद रिटायर्ड होने तक पदस्थापना उज्जैन के राजस्व विभाग में अलग-अलग स्थानों पर रही। इसी कड़ी में विभागीय परीक्षा पास करने के बाद नायब तहसीलदार, तहसीलदार एवं डिप्टी कलेक्टर के पद पर प्रमोशन हुआ। इस अवधि के दौरान उनकी आय अपने स्त्रोतों से 356.96% ज्यादा पाई गई। मामले में उज्जैन लोकायुक्त ने विवेचना पूरी कर चालान कोर्ट में पेश किया। अभियोजन द्वारा आवेदन कर निवेदन किया गया कि प्रभावित व्यक्तिगण द्वारा अर्जित आय से अधिक संपत्ति 1.28 करोड़ रु. की चल-अचल संपत्ति मध्यप्रदेश शासन के पक्ष मे की जाए। इस पर कोर्ट ने उक्त आदेश जारी किया।
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