मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय में आयोजित विधायक दल की बैठक में मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री का फैसला हो गया है। तनावपूर्ण स्थिति के बीच में भाजपा के विधायक दल ने सर्वसम्मति से अपने नेता का चुनाव किया। श्री मोहन यादव मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे।
श्री नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष, श्री जगदीश देवड़ा एवं श्री राजेंद्र शुक्ला को डिप्टी सीएम बनाया गया है. अंतिम समय में अचानक मोहन यादव का नाम सामने आया। मोहन यादव वर्तमान में उज्जैन दक्षिण से विधायक हैं। शिवराज कैबिनेट में उच्च शिक्षा मंत्री के पद पर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बेहद करीबी है। ओबीसी का चेहरा है।
सब कुछ पहले से तय कर लिया गया था
सबसे पहले दिल्ली से आए पर्यवेक्षकों ने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की। इसके बाद एक अनौपचारिक बैठक का आयोजन हुआ। इस बैठक में पर्यवेक्षकों के अलावा संगठन महामंत्री श्री हितानंद शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष श्री विष्णु दत्त शर्मा, मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर, श्री प्रहलाद सिंह पटेल मुख्य रूप से उपस्थित थे। माना जा रहा है कि इसी बैठक में पर्यवेक्षकों द्वारा भाजपा के शीर्ष नेताओं को, केंद्रीय नेतृत्व की इच्छा के बारे में बता दिया गया था। इसी दौरान भोपाल पुलिस को पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल के सरकारी आवास पर सुरक्षा बढ़ाए जाने के निर्देश दिए गए थे। बैठक के आयोजन के पहले केंद्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिल्ली से भोपाल रवाना होने के निर्देश दिए गए थे। बाद में उनके भोपाल रवाना होने से पहले ही कार्यक्रम कैंसिल कर दिया गया।
शिवराज सिंह के समर्थन में नारेबाजी हुई
भोपाल में भाजपा विधायक दल की बैठक से पूर्व प्रदेश कार्यालय में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समर्थकों की भारी भीड़ देखी गई। शिवराज सिंह चौहान के समर्थन में जबरदस्त नारेबाजी की गई। कुछ लोग बातों में पोस्ट लिए हुए थे। उनका कहना था कि हम मामा को जानते हैं, मामा को वोट दिया है।
भाजपा और कांग्रेस में बड़ा अंतर
इतनी तनावपूर्ण पॉलीटिकल सिचुएशन के बीच भाजपा विधायक दल की मीटिंग और मुख्यमंत्री का चुनाव, यह घटनाक्रम भाजपा और कांग्रेस में बड़ा अंतर बताता है। कांग्रेस पार्टी में किसी भी फैसले से पहले तनावपूर्ण स्थिति सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित होती है। फिर बैठक में सर्वसम्मति से एक निर्णय होता है कि हम सर्वसम्मति से निर्णय नहीं कर सकते इसलिए फैसला हाई कमान पर छोड़ते हैं। पर्यवेक्षकों के सामने अनुशासन की धज्जियां उड़ा दी जाती हैं।
भारतीय जनता पार्टी में इसका उल्टा होता है। केंद्रीय नेतृत्व पहले फैसला करता है। सभी नेताओं को निर्देश दिए जाते हैं कि वह अनुशासन का पालन करेंगे और अपने समर्थकों को अनुशासन में रहने के लिए निर्देशित करेंगे। पर्यवेक्षक आकर सभी दावेदारों को केंद्रीय नेतृत्व के फैसले के बारे में बताते हैं। इसके बाद बड़ी ही शालीनता के साथ दावेदारों में से कोई एक, केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तय किए गए नेता का प्रस्ताव रखता है। बाकी सब समर्थन करते हैं, और सर्वसम्मति से औपचारिकता पूरी हो जाती है।
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