मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिले ऐतिहासिक बहुमत के बाद, अब भाजपा विधायक दल के नेता के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। जो व्यक्ति बीजेपी विधायक दल नेता होगा वही मुख्यमंत्री होगा। श्री शिवराज सिंह चौहान, श्री नरेंद्र सिंह तोमर, श्री कैलाश विजयवर्गीय और श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो सभी जानते हैं लेकिन श्री प्रहलाद सिंह पटेल के बारे में लोग जानने की कोशिश कर रहे हैं। आइए, श्री प्रहलाद सिंह पटेल की लाइफ स्टोरी में से आपको कुछ खास बातें बताते हैं:-
प्रहलाद पटेल का गांव, माता-पिता और जन्मदिन
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में श्री मूलम सिंह पटेल खेती किसानी करते थे। दिनांक 28 जून 1960 को श्रीमती यशोदाबाई पटेल ने एक बालक को जन्म दिया। बालक का नाम प्रहलाद रखा गया। 20 साल बाद सन 1980 में पहली बार पब्लिक में इस बालक की एक पहचान बनी। जबलपुर गवर्नमेंट साइंस कॉलेज के छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुने गए। उन दोनों छात्र संघ चुनाव बड़े प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव हुआ करते थे। यही से श्री प्रहलाद सिंह पटेल की पॉलीटिकल लाइफ शुरू हुई।
प्रहलाद सिंह पटेल ने कुल कितने चुनाव लड़े
- 1982 में छात्र संघ अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म होते ही भारतीय जनता युवा मोर्चा का जिला अध्यक्ष पद मिला।
- 1986 से 1990 तक युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव से लेकर भाजपा के प्रदेश महासचिव तक कई पदों पर काम किया।
- सन 1989 में भाजपा ने सिवनी लोकसभा से अपना अधिकृत प्रत्याशी बनाया और उन्होंने कांग्रेस के श्री गगरी शंकर मिश्र को पराजित किया। इस प्रकार पहली बार शिवराज सिंह पटेल सांसद बने।
- सन 1996 में एक बार फिर सिवनी लोकसभा सीट से सांसद चुने गए।
- सन 1998 में सिवनी लोकसभा से चुनाव हार गए।
- सन 1999 में बालाघाट लोकसभा से सांसद चुने गए।
- सन 2004 में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव हार गए।
- सन 2014 में दमोह लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए।
- सन 2019 में दमोह लोकसभा सीट से फिर से सांसद निर्वाचित हुए।
प्रहलाद सिंह पटेल के बारे में विचारणीय बिंदु
श्री प्रहलाद सिंह पटेल, नरसिंहपुर मूल के नेता है परंतु उन्होंने अपना पहला चुनाव सिवनी लोकसभा से लड़ा। पूरे 9 साल सिवनी लोकसभा की राजनीति करने के बाद जब सन 1998 में चुनाव हार गए तो सिवनी लोकसभा क्षेत्र छोड़ दिया। सन 1999 में बालाघाट से चुनाव लड़ा और एक नई पॉलीटिकल पारी की शुरुआत की, लेकिन बालाघाट में भी नहीं रुके। सन 2004 में छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ने चले गए। हार गए तो 10 साल तक चुनावी राजनीति से बाहर रहे और 2014 में दमोह लोकसभा सीट से सांसद बने। दमोह में भी 10 साल हुए हैं और अब एक बार फिर श्री प्रहलाद सिंह पटेल की प्रोफाइल बदल रही है।
आंकड़े बताते हैं कि श्री प्रहलाद सिंह पटेल किसी भी एक स्थान पर लंबे समय तक नहीं टिकते। यह समीक्षा का विषय है कि, ऐसा क्यों होता है कि जब प्रहलाद सिंह पटेल किसी नए क्षेत्र में जाते हैं तो जनता उन्हें काफी पसंद करती है लेकिन फिर हालात कुछ ऐसे बन जाते हैं कि उन्हें वह निर्वाचन क्षेत्र छोड़ना पड़ता है। दमोह के सांसद रहते हुए सागर और दमोह के भाजपा नेताओं के साथ उनके संबंध और विवादों पर भी विचार किया जाना चाहिए।
गौर करने वाली बातें
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में भले ही भाजपा को ऐतिहासिक विजय प्राप्त हुई है परंतु यह भी याद रखना होगा कि इस भारतीय जनता पार्टी और लोकप्रिय शिवराज सिंह चौहान सरकार के 12 मंत्री चुनाव हार गए। इन मंत्रियों के चुनाव हारने के कारणों की समीक्षा की जाना जरूरी है। ज्यादातर मामलों में पता चल रहा है कि, मतदाताओं को माननीय मंत्री से कोई आपत्ति नहीं थी परंतु उनकी अनुपस्थिति में उनके परिवारजन और उनके समर्थक जो कुछ भी करते थे, पब्लिक ने चुनाव में उसी का जवाब दिया है।
भारतीय जनता पार्टी में ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति के संत स्वर्गीय श्री कैलाश जोशी की छवि को उन्हीं के सुपुत्र श्री दीपक जोशी ने कितना धूमिल किया बताने की आवश्यकता नहीं। यदि सुपुत्र की कहानी दिल्ली तक नहीं पहुंचती तो स्वर्गीय श्री नंदकुमार सिंह चौहान की स्थिति कुछ और ही होती। परिवार और समर्थकों के कारण ही श्री प्रभात झा, श्रीमती सुमित्रा ताई, श्री नरेंद्र सिंह तोमर और डॉ नरोत्तम मिश्रा की छवि पर दाग लगा। मध्यप्रदेश के नए नेता का चुनाव करने से पहले उसके अलावा उसके परिवार और उसके समर्थकों की कुंडली पढ़ना भी जरूरी है।
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