भारत की राजधानी दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय में मध्यप्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग में प्रभारी संचालक एवं अपर संचालक स्तर के कई अधिकारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई पूरी हो गई है। सन 2010 से 2023 तक, पूरे 13 साल तक इस मामले में बहस होती रही। अब फैसला का समय आ गया है।
विवाद क्या है
मध्य प्रदेश में सन 1991 में प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी के पदों पर भर्ती की गई थी। इनका काम था 40 वर्ष से अधिक आयु के निरक्षर नागरिकों को साक्षर बनाना। यानी उन्हें अपना नाम लिखना, पढ़ने एवं हस्ताक्षर करना सिखाना। यह नृत्य सरकार के विशेष अभियान के तहत हुई थी। इस हेतु कोई योग्यता (BEd डीएलएड) निर्धारित नहीं की गई थी। अस्थाई अभियान के लिए स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति कर दी गई थी। मध्य प्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग प्राचार्य कैडर के अधिकारियों का कहना है कि, प्रौढ़ शिक्षा अधिकारियों ने अयोग्य होने के बावजूद स्कूल शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर पदोन्नति प्राप्त कर ली है। शासन द्वारा इन सभी को नियम वृद्धि प्रमोशन दिए गए हैं जिन्हें रद्द किया जाना चाहिए। प्राचार्य कैडर के अधिकारियों का कहना है कि जिन पदों पर, इनका प्रमोशन हुआ है उन पदों पर प्राचार्य कैडर के अधिकारियों की पदस्थापना होनी चाहिए।
अब क्या होगा
सुप्रीम कोर्ट ने यदि शासन के निर्णय को सही बताया तो सब कुछ यथावत रहेगा लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन को नियम विरुद्ध बता दिया तो सभी अधिकारियों की सेवाएं रिवर्ट हो जाएगी। अर्थात स्कूल शिक्षा में अपर संचालक स्तर के अधिकारी, फिर से प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी बना दिए जाएंगे। गांव-गांव जाएंगे, रात के समय कक्षा लगाकर निरक्षर नागरिकों को साक्षर बनाएंगे।
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