Madhya Pradesh Public Service Commission Indore द्वारा हाईकोर्ट में दाखिल की गई अपील की सुनवाई के बाद जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश के विद्वान चीफ जस्टिस श्री रवि मालिमठ एवं विशाल मिश्रा की खंड पीठ द्वारा जस्टिस अहलूवालिया के आदेश को स्थगित कर दिया गया है।
याचिकाकर्ताओ को इंटरव्यू में शामिल करने का निर्देश दिया था
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि, याचिका क्रमांक 12628/23 से लिंक अनेक याचिकाओं में जस्टिस जी.एस.अहलुबलिया ने दिनांक 23/8/2023 को 89 पेज का फैसला पारित किया था तथा सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिकाओं के निर्णय के अनुसार आयोग को आगामी प्रक्रिया अपनाने हेतु निर्देशित किया गया था तथा याचिकाकर्ताओ को इंटरव्यू में शामिल किए जाने का भी निर्देश दिया गया था। जस्टिस अहलुबलिया के उक्त आदेश के विरुद्ध MPPSC द्वारा हाईकोर्ट में रिट अपील क्रमांक 2017/2023 दाखिल की गई, जिसकी आज प्रारंभिक सुनवाई करते हुए समस्त अनावेदक को नोटिस जारी कर जस्टिस अहलुबलिया के आदेश को स्टे कर दिया गया है। PSC INDORE की ओर से सीनियर अधिवक्ता श्री प्रशांत सिंह ठाकुर, इंटरबीन कर्ताओ की ओर से रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह,अंशुल तिवारी ने पक्ष रखा।
राज्य सेवा परीक्षा 2019 विवाद क्या है
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कहा कि, मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा 2019 से लाखों बच्चों के भविष्य के साथ निरंतर खिलवाड़ करता आ रहा है। ज्ञातव्य हो की मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश दिनांक 27/1/21 के प्रवर्तन के दौरान असंवैधानिक नियमों को आयोग ने लागू करके 2019 की समस्त परीक्षाएं आयोजित कर ली गई। जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिका क्रमांक 807/2021 मे दिनांक 7/4/23 को विस्तृत फैसला पारित करके परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन दिनांक 17/2/2020 को असंवैधानिक घोषित करके पुराने नियमो के अनुसार कार्यावहीं किए जाने का स्पष्ट आदेश दिया गया था, लेकिन PSC द्वारा समय सीमा व्ययतीत करके 10/10/23 को पुराने परिणामों को निरस्त करके 2721 आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को मुख्य परीक्षा हेतु पात्र घोषित किया जाकर पुनः मुख्य परीक्षा आयोजित कराने का निर्णय लिया गया।
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग इंदौर के इस निर्णय के विरुद्ध कई अभ्यर्थियों द्वारा हाईकोर्ट की सिंगल बैच मे केस दाखिल करके कहा गया कि हम लोग मुख्य परीक्षा में सफल घोषित किए जा चुके है, इसलिए उन्हें पुनः मुख्य परीक्षा मे सम्मिलित होने बाध्य न किया जाए। तत समय MPPSC द्वारा कोर्ट को नहीं बताया गया कि जिन नियमो के तहत उक्त परीक्षाए आयोजित की गई थी, वो नियम न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है। जिसके कारण उक्त नियम के तहत की गई समस्त कार्यवाह स्वतः शून्य हो गई है। उक्त तथ्य की जानकारी के आभाव मे हाईकोर्ट की सिंगल बैच द्वारा दिनांक 29/11/22 को यह आयोग की लिखित सहमति से निर्णय पारित करके कहा गया कि, केवल आरक्षित वर्ग के 2721 अभ्यर्थियों का स्पेशल मेंस (विशेष परीक्षा) आयोजित करके समस्त अभ्यार्थियों के मुख्य परीक्षा के अंको का नार्मलइजेशन करके साक्षात्कार की प्रक्रिया तीन महिने के अंदर पुरी की जाए।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल की गई जिसमे सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोग की समस्त प्रक्रिया निर्णय के अधीन कर दीं गई। सुप्रीम कोर्ट के उक्त आतंरिम आदेश के प्रवर्तन के दौरान MPPSC ने हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश दिनांक 29/11/2022 के परिपालन मे विशेष मुख्य परीक्षा आयोजित कर नियम विरुद्ध नॉर्मलाइजेशन किया गया, जिससे कई अभ्यर्थी साक्षातकार हेतु अयोग्य कर दिए। जिन्होने हाई कोर्ट में पुनः wp/12628/23 सहित दर्जनों याचिका दाखिल की गईं। जिनमे हाईकोर्ट द्वारा दिनांक 23:8:23 को याचिका क्रमांक 12628/2023 से लिंक समस्त याचिकाओं में 89 पृष्ठ का आदेश पारित किया जाकर एमपी लोक सेवा आयोग की समस्त प्रक्रिया को अवैधानिक मानकर सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिका के आदेशानुसार आगामी कार्यवाही की जाना उचित होगा। हाईकोर्ट के उक्त आदेश के विरुद्ध एमपीपीएससी द्वारा रिट अपील क्रमांक 2017/23 दखिल की गई। उक्त अपील में ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अधिवक्ताओ द्वारा आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की ओर से इंटरवीन किया गया है।
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