भारतीय जीवन बीमा निगम की सहायक कंपनी के तौर पर काम करते हुए पूरे भारत में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर लेने वाली दि ओरिएण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, भोपाल की कमर्शियल कोर्ट (वाणिज्यिक न्यायालय) में बेईमान साबित हुई है। कंपनी ने दावत फूड लिमिटेड के कारखाने का बीमा किया और प्रीमियम के रूप में करीब 31 लाख रुपए लिए, लेकिन जब कंपनी में हादसा हो गया तो क्लेम देने से मना कर दिया। कोर्ट ने कंपनी को आदेश दिया है कि वह 161 करोड रुपए का क्लेम और 6% ब्याज अदा करें।
दावत फूड लिमिटेड बनाम दि ओरिएण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड - वाणिज्यिक न्यायालय भोपाल
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के नजदीक मंडीदीप में स्थित दावत फूड लिमिटेड कंपनी ने अपनी फैक्ट्री और संपत्ति का साल 2010 में Oriental Insurance Company Ltd से बीमा करवाया था। 18 जनवरी 2014 को इंश्योरेंस रिन्यू हुआ। इसमें संपत्ति का कुल मूल्य 373 करोड़ 53 लाख 84 हजार 853 रुपए आंका गया। इस आधार पर बीमा कंपनी ने 30 लाख 82 हजार 681 रुपए का प्रीमियम तय किया। इंश्योरेंस एक साल यानी 17 जनवरी 2015 तक था।
बीमा की शर्तें इस प्रकार थी
एक साल के भीतर दुर्घटना की वजह से दावत फूड कंपनी की संपत्ति को नुकसान पहुंचता है तो बीमा कंपनी को क्लेम की राशि देनी पड़ेगी।
यदि संपत्ति का नुकसान प्रोसेसिंग के दौरान हुआ या किसी सरकारी आदेश पर बीमित संपत्ति को जला दिया या नुकसान पहुंचा तो क्लेम की राशि नहीं मिलेगी।
कलेक्टर और पुलिस की जांच में घटना का कारण शॉर्ट सर्किट बताया था
7 जून 2014 को दावत फूड्स लिमिटेड के मंडीदीप परिसर में रखे धान के भंडार में भीषण आग लगी। कंपनी के स्टोर में रखा करीब 44 हजार 975 मीट्रिक टन धान बर्बाद हो गया। यह मध्य प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी, जिसकी रिपोर्ट मंडीदीप थाने में दर्ज की गई। पुलिस ने गवाहों के बयान दर्ज किए। दुर्घटनास्थल पर नमूनों की फॉरेंसिक जांच कराई। बिजली कंपनी के इंजीनियरों से रिपोर्ट भी ली। इस आधार पर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची थी कि आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी। रायसेन के तत्कालीन कलेक्टर ने मामले की मजिस्ट्रियल जांच कराई थी। इस जांच में भी शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लगना बताया गया।
कंपनी ने बीमा देने से मना कर दिया, कहा तुमने खुद आग लगा ली है
जिस दिन आग लगी थी इसकी सूचना पुलिस और प्रशासन को देने के साथ साथ बीमा कंपनी को भी दी गई थी। आग लगने की सूचना पर बीमा कंपनी के अधिकारी भी मौके पर पहुंचे थे। दावत फूड्स लिमिटेड के अधिवक्ता शिरीष श्रीवास्तव बताते हैं कि कंपनी ने नुकसान का आंकलन किया। 44 हजार 975 मीट्रिक टन धान की कीमत 182.22 करोड़ रु. आंकी गई। लकड़ी के रैक, तारपोलीन की शीट और दूसरे मटेरियल का नुकसान जोड़कर 189.72 करोड़ का क्लेम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी को 30 जून को भेज दिया गया था। इसके बाद बीमा कंपनी ने कुछ महीनों की जांच पड़ताल के बाद इस दावे को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि दावत फूड्स लिमिटेड ने अपने स्टोर में ये आग खुद लगाई है। यह बीमा शर्तों का उल्लंघन है इसलिए क्लेम नहीं दिया जा सकता।
इंश्योरेंस कंपनी ने तीन सर्वेयरों से कराई थी जांच
- अधिवक्ता शिरीष श्रीवास्तव का कहना है कि बीमा कंपनी ने दावत फूड्स लिमिटेड का दावा निरस्त करने से पहले तीन सर्वेयरों से दुर्घटना के कारणों और नुकसान की जांच कराई थी।
- पहले सर्वेयर आदर्श एसोसिएट्स की नियुक्ति दुर्घटना वाले दिन 7 जून को ही हो गई थी।
- ओरिएंटल इंश्योरेंस ने इसके बाद आरके वाजपेयी एसोसिएट्स को 20 अगस्त को बतौर सर्वेयर नियुक्त किया।
- इसी बीच बीमा कंपनी को अजय शर्मा और शिव साहनी नाम के दो लोगों ने शिकायतें कीं। इनमें कहा गया कि दावत फूड्स लिमिटेड ने देनदारी के दबाव में आकर अपने भंडार में खुद आग लगवाई है। बीमा क्लेम की रकम से कंपनी किसानों की बकाया राशि का भुगतान करना चाहती है।
- इस शिकायत की जांच के लिए इंश्योरेंस कंपनी ने जे. बशीर एंड एसोसिएट्स नाम की एक तीसरी फर्म को नियुक्त किया।
फॉरेंसिक जांच में पेट्रोलियम तत्व की पुष्टि हुई थी
शिकायत की जांच के लिए अधिकृत की गई जे बशीर एंड एसोसिएट्स ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया कि धान के भंडार में पेट्रोल- केरोसिन छिड़ककर आग लगाई गई थी। रिपोर्ट में ये भी लिखा कि धान ज्वलनशील नहीं होता। इसे बाहरी ईंधन के इस्तेमाल के बगैर नहीं जलाया जा सकता था। जे बशीर एंड एसोसिएट्स ने अपनी रिपोर्ट में हैदराबाद की ट्रूथ प्राइवेट लैब की रिपोर्ट भी अटैच की। इस लैब ने जब धान के जले नमूनों की जांच की तो इसमें हाइड्रोकार्बन यानी पेट्रोलियम तत्व की पुष्टि की थी। जे बशीर एंड एसोसिएट्स की इस रिपोर्ट के बाद ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने दावत फूड्स लिमिटेड को बीमा शर्तों का उल्लंघन करने का दोषी पाते हुए क्लेम का भुगतान करने से इनकार कर दिया था।
OICL कोर्ट में अपना दावा साबित नहीं कर पाई
दावत फूड्स ने इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ रायसेन की जिला अदालत में परिवाद दायर किया। 2015 में वाणिज्यिक न्यायालय का गठन होने के बाद ये केस कमर्शियल कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया। कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी के वकील से कहा कि वह साबित करें कि आग लगी नहीं लगाई गई थी। कंपनी की तरफ से कोर्ट के सामने जो दलीलें पेश की गई वह सभी खारिज हो गई।
कोर्ट की कार्यवाही के दौरान क्या हुआ
- इंश्योरेंस कंपनी, शिकायत करने वाले अजय शर्मा और शिव साहनी को अदालत के सामने पेश नहीं कर पाई। इन दोनों ने शिकायत की थी कि कंपनी ने अपना घाटा पूरा करने के लिए खुद आग लगाई थी।
- शिकायतों की जांच करने वाली जे. बशीर एंड एसोसिएट्स ने दोनों शिकायतकर्ताओं से कभी मुलाकात ही नहीं की। उनके दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं जुटाए। उनकी पहचान का भी सत्यापन नहीं किया। यानी शिकायतकर्ताओं का अस्तित्व ही साबित नहीं हुआ।
- बीमा कंपनी यह भी साबित नहीं कर पाई कि धान ज्वलनशील नहीं होता, उसे जलाने के लिए बाहरी ईंधन या मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती है।
- बीमा कंपनी ने हवा की रफ्तार बताने वाले मौसम विभाग के जो दस्तावेज कोर्ट के सामने पेश किए वे मंडीदीप के नहीं थे।
- दावत फूड्स लिमिटेड ने मंडी और खरीदी के दस्तावेजों से अपना स्टॉक साबित किया। यह भी साबित किया कि दुर्घटना के वक्त वह घाटे के बजाय प्रॉफिट में थी। उसके पास विदेशों से भी डिमांड थी।
- बीमा कंपनी ये भी नहीं बता सकी कि दावत फूड्स ने किन देनदारियों से बचने के लिए अपने स्टॉक में आग लगाई।
हर रिपोर्ट में नुकसान का आकलन अलग-अलग
इस मामले में दावत कंपनी को हुए नुकसान का आकलन भी अलग-अलग था। मंडीदीप पुलिस ने गवाहों के बयान, स्टॉक और दुर्घटना स्थल की जांच के बाद अनुमान लगाया था कि कंपनी को करीब 200 करोड़ का नुकसान हुआ है। वहीं दावत फूड्स कंपनी के अधिकारियों ने 189.72 करोड़ के नुकसान का आंकलन कर दावा पेश किया। बीमा कंपनी की ओर से नियुक्त सर्वेयर ने 161 करोड़ 20 लाख 27 हजार 743 रु. का नुकसान माना। दूसरे सर्वेयर ने केवल 68 करोड़ 77 लाख 7 हजार 250 रुपए के नुकसान की रिपोर्ट दी थी। गवाही में ये भी सामने आया कि इस सर्वेयर ने मौके पर जाकर कोई जांच ही नहीं की थी।
भारत की बीमा इंडस्ट्री में बड़ा विवाद और महत्वपूर्ण फैसला
अधिवक्ता शिरीष श्रीवास्तव का कहना है कि इंश्योरेंस कंपनी के पास उच्च न्यायालय जाने का विकल्प खुला हुआ है। इसके बाद भी वाणिज्यिक न्यायालय का यह फैसला कुछ मामलों में बेहद महत्वपूर्ण है। पहला ये कि मध्य प्रदेश के इतिहास में इतनी बड़ी रकम का इंश्योरेंस क्लेम का फैसला आज तक नहीं आया। दूसरा इस मामले ने बीमा कंपनियों की उन शर्तों की तरफ ध्यान खींचा है जिसकी वजह से पीड़ित कंपनी को मुआवजा मिलने में दिक्कत होती है।
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