कई रिटायर्ड कर्मचारियों के इस विषय पर प्रश्न हैं। जहां तक, कोर्ट प्रकरणों का प्रश्न है, तब यह विशुद्ध रूप से निर्भर करता है कि कोर्ट ने क्या आदेश दिया है। विलंब से कोर्ट की शरण लेने वाले कर्मचारियों के प्रकरण में कोर्ट, कभी कभी काल्पनिक या नोशनल लाभ देने का आदेश करता है। इसका अर्थ यह हुआ कि, इंक्रीमेंट के आधार पर, बढ़ी हुई पेंशन तो प्राप्त होगी, लेकिन रिटायरमेंट के बाद की एरियर की राशि नही मिलेगी। केंद्र शासन द्वारा उनके कर्मचारियों के लिए, नोशनल लाभ के आदेश दिए गए हैं, वहीं दूसरी ओर, मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने अंतर की राशि एवम पेंशन पुनरीक्षण के आदेश दिए हैं।
इसके अलावा कोर्ट द्वारा जिन आधारों पर निर्णय दिए गए हैं, उन्हें भी कर्मचारियों को पढ़ना चाहिए। वे आधार निम्न है:-
1- कर्मचारी द्वारा वर्ष भर सेवा करने के पश्चात, सेवा के बदले में मिलने वाले, सेवा लाभ, कर्मचारी के पक्ष में, विधिक/कानूनी अधिकार उत्पन्न करते हैं, उक्त उद्भूत विधिक अधिकार से कर्मचारी को वंचित नहीं किया जा सकता है, ना ही, निषेध किया जा सकता है। अतः, कर्मचारी को जुलाई में मिलने वाले, इंक्रीमेंट से वंचित नही किया जा सकता है। जब तक किसी दूसरे कारण से वेतन वृद्धि को नही रोका गया हो।
2- ऐसा कोई नियम नहीं है, जो, पूर्व में की गई सेवा लाभ या वेतन वृद्धि प्राप्त करने के लिए, यह शर्त अधिरोपित करता हो, कि कर्मचारी को एक जुलाई को सेवा में निरंतर रहना पड़ेगा।
3- वेतन में, वेतन वृद्धि प्रदान किया जाना, सेवा की एक शर्त है। वेतन वृद्धि, कलंक रहित सेवा के लिए, एक पारितोषिक है, जो कि एक अधिकार के रूप में परिवर्तित हो जाता है। वेतन वृद्धि प्रदान करने की कालावधि एक वर्ष है। कलंक रहित सेवा पूरे वर्ष देने के पश्चात , शासकीय कर्मचारी, वेतन वृद्धि का पात्र हो जाता है।
(4) मध्यप्रदेश शासन द्वारा दायर अपील अभी भी उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित/विचाराधीन सभी अपीलें निरस्त हो गईं हैं। कोर्ट आदेश के पालन में विभागीय आदेश किए जाने, प्रारंभ हो गए है।
लेखक श्री अमित चतुर्वेदी, अधिवक्ता है एवं मध्य प्रदेश हाई कोर्ट जबलपुर में प्रैक्टिस करते हैं।
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