BNS 28, IPC 90 - भय या भ्रम में दी गई स्वीकृति क्षमा योग्य नहीं होगी, जानिए

Bhopal Samachar

Legal general knowledge and law study notes 

बहुत से लोग किसी भी व्यक्ति को भ्रम में डालकर या कोई भय देकर उनसे बहुत कुछ करवा लेते हैं। ऐसे में बहुत से तर्क दिए जाते हैं कि वो बालिग थे इतना तो समझ सकते थे लेकिन भ्रम में डालकर ली गई स्वीकृति जो बाद में एक अपराध बन जाए वह क्षमा योग्य नहीं होती है। 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 28, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 90 की परिभाषा 

अगर किसी व्यक्ति से डरा-धमका कर या किसी भी प्रकार का भय दिखा कर, किसी भी प्रकार से गुमराह या भ्रम में करके, या 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति से ली गई स्वीकृति या कोई पागल व्यक्ति से ली गई स्वीकृति या किसी को नशीली दवा पिलाकर ली गई सहमति या स्वीकृति IPC की धारा 90 एवं BNS की धारा 28 के अंतर्गत अवैध होगी।
धारा 90 के अनुसार, डर या भ्रम का अर्थ है:
डर का अर्थ है किसी ऐसे परिणाम का भय जो वास्तव में घटित हो सकता है।
भ्रम का अर्थ है किसी ऐसी वस्तु या स्थिति का विश्वास जो वास्तव में मौजूद नहीं है।

The Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 section 28, Indian Penal Code, 1860 section 90 Punishment 

"उत्तर प्रदेश राज्य बनाम नौशाद निर्णय वर्ष 2014 मामले मे आरोपी ने पीड़िता को आश्वासन दिया कि वह उससे शादी करेगा इसी भ्रम में उसने पीड़िता के साथ उसने फिजिकल रिलेशन बनाए, जब वह गर्भवती हो गई तो उसे शादी करने से मना कर दिया, इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरोपी को बलात्कार के अपराध का दोषी माना क्योंकि महिला से सहमति भ्रम और गलतफहमी देकर प्राप्त की थी। 

कुछ महत्वपूर्ण निर्णय निम्नलिखित हैं:

  • 1962 में, उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस एल.एम. सिंह के निर्णय में कहा कि डर या भ्रम का अर्थ है "किसी ऐसे परिणाम का भय जो वास्तव में घटित हो सकता है, या किसी ऐसी वस्तु या स्थिति का विश्वास जो वास्तव में मौजूद नहीं है।"
  • 1971 में, उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस पी.बी. गजेंद्रगडकर के निर्णय में कहा कि डर या भ्रम की मात्रा महत्वपूर्ण नहीं है। यदि सहमति डर या भ्रम के कारण दी गई है, तो वह सहमति मान्य नहीं होगी।
  • 1983 में, उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस एस.एन. ढींगरा के निर्णय में कहा कि डर या भ्रम का कारण कोई भी हो सकता है, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक।
  • 1993 में, उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस पी.एन. भगवती के निर्णय में कहा कि डर या भ्रम की सहमति के लिए आवश्यक है कि वह सहमति देने वाले व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा को दबा दे। 

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:- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 , इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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