भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। दिन बड़े और रात्रि छोटी होने लगती है। बसंत ऋतु का आगमन प्रारंभ हो जाता है। पूर्व के वर्षों में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती थी परंतु अब कालचक्र बदल रहा है।
मकर संक्रांति 2024 का पुण्य काल और महा पुण्य काल
भगवान सूर्य दिनांक 15 जनवरी को प्रातः 8:42 बजे मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए दिनांक 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मकर संक्रांति के दिन पुण्यकाल और महापुण्यकाल में स्नान-दान बेहद फलदायी माना जाता है। इस साल पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी को सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 5 बजकर 40 मिनट पर होगा। वहीं, महापुण्य काल दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से शाम 6 बजे तक रहेगा।
सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन क्या होता है, संक्रांति से क्या तात्पर्य है
मकर संक्रांति के त्योहार का ज्योतिष में विशेष महत्व माना जाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तराणय होते हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार एक वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं। जिसमें चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण मानी गई हैं। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से निकल मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रान्ति के रूप में जाना जाता है। जब सूर्य देव मकर रेखा से उत्तर की ओर स्थित कर्क रेखा की ओर भ्रमण करते हैं तो इसे सूर्य का उत्तरायण कहते हैं और जब कर्क रेखा से दक्षिण की ओर स्थित मकर रेखा की ओर भ्रमण करते हैं तो इसे सूर्य का दक्षिणायन कहते हैं। सूर्य जब उत्तरायण होते हैं तो दिन बड़े और रात छोटी होती है। सूर्य जब दक्षिणायन होते हैं तो रात्रि काल की अवधि बड़ी और दिन छोटे होते हैं। मकर संक्रांति नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ऋतु में बदलाव आने लगता है। शरद ऋतु की विदाई होने लगती है और बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व - सूर्य की कृपा और शनि की शांति
मकर संक्रांति के ज्योतिषीय महत्व के साथ-साथ इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बड़ा माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव शनिदेव के पिता हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जहां के एक महीने तक रहते हैं। शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। इस तरह से मकर संक्रांति पिता और पुत्र के मिलन के रूप में देखा जाता है। मकर संक्रांति पर भगवान सूर्य की उपासना, दान, गंगा स्नान और शनिदेव की पूजा करने से सूर्य और शनि से संबंधित तमाम तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान सूर्य की कृपा पाने के लिए इस दिन तांबे के पात्र में जल के साथ काला तिल, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत डालकर सूर्य को अर्घ्य देने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति के उपाय, मकर संक्रांति के दिन क्या दान करना चाहिए
मकर संक्रांति पर कुछ उपाय करने से कष्टों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए ऐसा करने से दस हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है। इस दिन ऊनी कपड़े, कम्बल, तिल और गुड़ से बने व्यंजन और खिचड़ी दान करने से सूर्य और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। मकर संक्रांति पर प्रयाग के संगम तट पर स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति पर तिल का दान, घी का दान, गुड़ का दान और खिचड़ी का दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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