मध्य प्रदेश सरकार ने अपने 450000 शासकीय कर्मचारियों के पेंशन नियमों में संशोधन कर दिया है। यह सभी कर्मचारी न्यू पेंशन स्कीम के दायरे में आते हैं। लोकसभा चुनाव के पहले किया गया यह संशोधन, कर्मचारियों को लुभाने और OPS आंदोलन से दूर करने का प्रयास माना जा रहा है।
MP NPS में संशोधन, OPS वाले बंधन समाप्त
मध्य प्रदेश सरकार ने शुक्रवार दिनांक 12 जनवरी 2024 को पेंशन नियमों में संशोधन कर दिया। हालांकि इसकी किसी भी प्रकार की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई। बताया गया है कि इस संशोधन के बाद NPS के दायरे में आने वाले सरकारी कर्मचारी को किसी प्रकार का दंड मिला हो या उसे विभागीय जांच के बाद नौकरी से बर्खास्त किया गया हो या कोर्ट ने सजा सुना दी हो… इनमें से किसी भी परिस्थिति में उसकी पेंशन नहीं रोकी जाएगी। यही नहीं, पेंशन में किसी भी तरह की कटौती नहीं की जा सकेगी। नौकरी के दौरान जो राशि जमा हुई है, उसका भी उन्हें ब्याज समेत भुगतान किया जाएगा।
MP NEWS - OPS के तहत किस प्रकार की कार्रवाई होती है
मध्य प्रदेश में प्रचलित पुरानी पेंशन योजना के तहत कर्मचारी के विरुद्ध कोर्ट में दोष सिद्ध होने, गबन का आरोप होने या डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी चलने पर पूरी पेंशन रोक दिए जाने अथवा, 50% से ज्यादा कटौती किए जाने का प्रावधान है। सरकार ग्रेच्युटी भी रोक लेती है। यह व्यवस्था 2.50 लाख कर्मचारियों पर पेंशन नियम 1976 के तहत लागू है। इसमें सिर्फ जीपीएफ में जमा राशि भुगतान की व्यवस्था है।
सरकार ने केवल NPS में बदलाव किया है
पहले एनपीएस में भी यही व्यवस्था थी। ओपीएस में यह भी प्रावधान बरकरार रहेंगे, जिसमें 10 साल की सेवा पूरी न होने पर पेंशन न देने की व्यवस्था है। इस अवधि के पूरे होने पर अंतिम देय वेतन की 50% राशि पेंशन में देय होगी। एक जनवरी 2005 के बाद नौकरी में आए कर्मचारियों के लिए एनपीएस लागू है। सेवा में आने के 10 साल में यदि ये रिटायर हो जाते हैं तो पेंशन का पूरा लाभ मिलेगा। कर्मचारी के नौकरी में आने पर उसके वेतन से हर महीने 10% राशि काटी जाती है, उसमें 14% राशि सरकार जमा करती है। यह राशि कार्पस फंड में जमा होती है। यदि कर्मचारी का वेतन 50 हजार है तो उसका और सरकार का अंश मिलाकर हर महीने 12 हजार रुपए कटौती होगी।
अधिकारियों की नाराजगी से OPS रुक जाती है, NPS नहीं रुकेगी
प्रदेश में पेंशन रुकावट से जुड़े 22 हजार मामले हैं। इनमें से 2 हजार ऐसे थे जिनमें से अधिकारी की नाराजगी की वजह से उसकी विभागीय जांच शुरू कर दी गई है। गंभीर आरोपों के तहत मुकदमा दायर कर दिया है तो 30 से 35 साल की सेवा पूरी होने पर भी उसे पेंशन का लाभ नहीं मिल पाता था। मामले का निराकरण होने तक सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी का परिवार सफर करता था। नई व्यवस्था को इसी का तोड़ बताया जा रहा है।
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