क्या लीप ईयर वाकई 366 दिन का होता है, इस साल पृथ्वी थोड़ा स्लो घूमती है - GK in Hindi

Bhopal Samachar

Amazing fact about leap year

हम सब जानते हैं कि 1 साल में 365 दिन होते हैं। यह निर्धारण पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के कारण किया गया है। यही कारण है कि फरवरी के महीने में 28 दिन होते हैं लेकिन प्रत्येक 4 साल में 1 फरवरी का महीना ऐसा आता है जिसमें 29 दिन होते हैं। इस प्रकार कैलेंडर में टोटल 366 दिन हो जाते हैं। सवाल यह है कि क्या लीप ईयर वाकई 366 दिन का होता है। क्या हर चौथे साल में पृथ्वी की स्पीड थोड़ी कम हो जाती है। चलिए पता लगाते हैं। 

4 साल में एक बार फरवरी के महीने में 29 दिन क्यों होते हैं

पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड लगते हैं। हालांकि, हम सुविधा के लिए इसे 365 दिन मानते हैं। बचे हुए लगभग 6 घंटे 4 साल में 6x4-24 घंटे हो जाते हैं यानी एक दिन हो जाता है। अब कैलेंडर में बाकी सारे महीने या 30 दिन के हैं या फिर 31 दिन के। सिर्फ फरवरी का महीना है जो 28 दिन का होता है। इसलिए 4 साल में कलेक्ट हुआ यह एक्स्ट्रा दिन फरवरी के महीने में जोड़ दिया जाता है और इस प्रकार फरवरी का महीना 4 साल में एक बार 29 दिन का हो जाता है। लीप ईयर को इंटरकैलेरी वर्ष या बाईसेक्सटाइल वर्ष भी कहा जाता है।

लीप ईयर ना हो, तो क्या होगा - IF THERE IS NO LEAP YEAR 

यदि लीप ईयर नहीं होगा तो ग्रेगोरियन कैलेंडर बेकार हो जाएगा और लोगों उसका उपयोग करना बंद कर देंगे, क्योंकि ग्रेगोरियन कैलेंडर को सबसे सरल और आसान बनाने के चक्कर में एक बड़ी गड़बड़ी हो गई। यह कैलेंडर, सोलर कैलेंडर से मैच नहीं करता। इसे सोलर कैलेंडर से मैच करने के लिए प्रत्येक चौथे साल को लीप ईयर बनाना पड़ता है। इस संशोधन के कारण ही इतने सालों से ग्रेगोरियन कैलेंडर का उपयोग होता चला आ रहा है अन्यथा ग्रेगोरियन कैलेंडर के अस्तित्व में आने के 100 साल बाद ही इसे रिजेक्ट कर दिया जाता क्योंकि यह कैलेंडर प्रकृति की घटनाओं की तुलना में 25 दिन आगे निकल जाता। 

क्या लीप ईयर वाकई में 366 दिन का होता है

कोई भी साल 366 दिन का नहीं होता। प्रत्येक वर्ष में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड होते हैं। दुनिया भर में ग्रेगोरियन कैलेंडर के अलावा और भी बहुत सारे कैलेंडर अस्तित्व में है। इस मामले में भारत सबसे आगे है। यहां पंचांग अस्तित्व में है। यह एक ऐसा कैलेंडर है जो स्थानीय भौगोलिक स्थिति के आधार पर बनाया जाता है। उदाहरण के लिए उज्जैन में बनाए जाने वाला पंचांग, हिमाचल प्रदेश के पंचांग से थोड़ा अलग होता है क्योंकि दोनों स्थानों पर सूर्य के उदय और अस्त का समय अलग होता है। भारतीय पंचांग बिल्कुल परफेक्ट कैलेंडर है और इसमें कोई भी साल 366 दिन का नहीं होता। ना ही पृथ्वी की परिक्रमा की गति में कोई अंतर आता है।

लीप ईयर कैसे कैलकुलेट किया जाता है - HOW TO CALCULATE LEAP YEAR

कोई भी वर्ष संख्या जो चार से विभाजित हो जैसे -2000, 2004, 2008, 2012, 2016, 2020, 2024, 2028, 2032 आदि सभी लीप ईयर है, जबकि सदी के अंत वाले वर्ष 400 से विभाजित होना चाहिए। 

दुनिया भर में कुल कितने कैलेंडर प्रचलित हैं 

ग्रेगोरियन कैलेंडर - क्योंकि इंग्लिश लैंग्वेज को इंटरनेशनल लैंग्वेज मान लिया गया इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया में सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाला कैलेंडर बन गया। ग्रेगोरियन कैलेंडर मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में और ईसाई समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है। 
हिजरी कैलेंडर - यह कैलेंडर इस्लाम धर्म के विशेषज्ञों द्वारा इस्लामिक कंट्रीज की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। यह चंद्रमा पर आधारित कैलेंडर है। 
बौद्ध कैलेंडर - यह भी चंद्रमा पर आधारित कैलेंडर है और बौद्ध धर्म के विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया है। 
यहूदी कैलेंडर - यह चंद्रमा और सूर्य दोनों की गति पर आधारित कैलेंडर है। 
चीनी कैलेंडर - यह भी चंद्रमा और सूर्य दोनों की गति पर आधारित कैलेंडर है। 

पंचांग (हिंदू कैलेंडर) - यह उपरोक्त सभी से बिल्कुल अलग है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह प्रकृति के सभी पांच अंग (सूर्य, चंद्रमा, समुद्र, पृथ्वी के अंदर का पर्यावरण अथवा वायु एवं पृथ्वी और अन्य ग्रहों के बीच का अंतरिक्ष) पर आधारित है। यही कारण है कि पिछले 5000 सालों से इसमें कोई लीप ईयर जोड़ना घटाना नहीं पड़ा और इसकी गणना सबसे सटीक है। 

पंचांग केवल भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी बनाए जाते हैं। यह सभी भौगोलिक आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। इन्हें पंचांग इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी गणना का फार्मूला "पंचांग" होता है। 

इसके अलावा दुनिया भर में 100 से ज्यादा कैलेंडर प्रचलन में हैं। दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ अपने स्थानीय कैलेंडर का पालन करती है। क्योंकि विद्वानों का मानना है कि काल गणना का दोष होने के कारण ग्रेगोरियन कैलेंडर कभी भी फेल हो सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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