मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक ऐसा हॉकी स्टेडियम बनाया गया है जिसमें खिलाड़ी नहीं खेल सकते। स्पष्ट दिखाई देता है कि बजट का खेल खेलने के लिए स्टेडियम बना दिया गया है। प्रतिष्ठित पत्रकार श्री रामकृष्ण यदुवंशी ने इसका खुलासा किया है। इस प्रकार का बेतुका विकास मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कई जगह दिखाई दे जाएगा। साफ समझ में आता है कि सरकारी खजाने से कुछ पैसा खर्च करना था, इसलिए विकास के नाम पर कुछ भी कर डाला।
स्टेडियम किसी काम का नहीं है, सिर्फ नाइट टूर्नामेंट हो सकते हैं
यह स्टेडियम लिंक रोड नंबर एक पर मेजर ध्यानचंद खेल परिसर के अंदर स्थित है। स्टेडियम को बनाने में 7 करोड रुपए खर्च किए गए हैं। पोस्टल एड्रेस से लगता है कि सब कुछ सही है। लिंक रोड नंबर एक सही है। मेजर ध्यानचंद खेल परिसर सही है। स्टेडियम बनाने के लिए इससे बढ़िया एड्रेस क्या हो सकता था परंतु स्टेडियम का वास्तु सही नहीं है। हॉकी स्टेडियम हमेशा इस प्रकार के बनाए जाते हैं कि खिलाड़ियों के चेहरे उत्तर अथवा दक्षिण दिशा की तरफ रहे, ताकि सूर्य की किरणों से उनका खेल डिस्टर्ब ना हो। यह स्टेडियम पूर्व-पश्चिम दिशा में बना दिया गया है। आप दिन के किसी भी समय मैच के लिए कोई ना कोई एक टीम सूर्य की करने के कारण डिस्टर्ब बनी रहेगी। इस डिस्टरबेंस के कारण मैच नहीं हो पाएगा। कुल मिलाकर स्टेडियम किसी काम का नहीं है, यहां सिर्फ नाइट टूर्नामेंट हो सकते हैं।
यह ब्लैक और व्हाइट के बीच ग्रे लाइन
इंजीनियरों को सब कुछ पता था, लेकिन बजट का अपना दबाव होता है। कभी फायदा उठाने के लिए और कभी किसी को फायदा पहुंचाने के लिए तत्काल पैसा खर्च करना होता है। इसी दबाव में गलती हो जाती है। आपके पूरे भारत में ईस्ट वेस्ट हॉकी स्टेडियम कहीं दिखाई नहीं देगा। मध्य प्रदेश में भी पिछले 10 सालों में 17 हॉकी टर्फ बिछाए गए हैं। सभी नॉर्थ साउथ हैं। ईस्ट वेस्ट कोई नहीं है। यह बेतुका विकास सिर्फ लाभ उठाने और लाभ पहुंचाने के लिए किया गया। यह एक प्रकार का भ्रष्टाचार है जिसे शासन के नियम अनुसार किया गया है। यह ब्लैक और व्हाइट के बीच ग्रे लाइन का फायदा उठाने वाला मामला है।
बेतुके विकास समर्थन में बेतुका दलील पढ़िए
खेल एवं युवा कल्याण संचालक श्री रवि गुप्ता ने पत्रकार श्री रामकृष्ण यदुवंशी को बयान दिया है कि, सामने रोड है। इसलिए यह नॉर्थ-साउथ बन नहीं सकता था। इस कारण ईस्ट- वेस्ट बनाना पड़ा। बीच शहर में ज्यादा मैदान होंगे तो स्कूल और कॉलेज के खिलाड़ियों को जोड़ पाएंगे। फ्लड लाइट लगाएंगे। वैसे भी आजकल अधिकतर बड़े मैच रात में ही होते हैं।
अब गुप्ता जी को कौन समझाए कि, स्टेडियम केवल रात में होने वाले बड़े मैच के लिए नहीं बनाए जाते, उसमें साल भर एक्टिविटीज चलती हैं। सैकड़ो छोटे मैच होते हैं, तब कहीं जाकर बड़े मैच के लिए बड़े खिलाड़ी बन पाते हैं। भोपाल हॉकी खेल की नर्सरी है। यहां बड़े माचो से ज्यादा छोटे मैच और प्रैक्टिस पर ध्यान दिया जाता है। वैसे गुप्ता जी को सब पता है लेकिन जब कोई पावरफुल पोजीशन पर बैठा हुआ बुद्धिमान व्यक्ति कुतर्क करने लगे, तो आप सिर्फ भगवान से ही प्रार्थना कर सकते हैं।
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