अनुशासनहीन अभ्यावेदन के कारण कर्मचारी को बर्खास्त नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट - EMPLOYEES NEWS

सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने (छत्रपाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) बर्खास्त किए गए एक कर्मचारी की सेवाएं बहाल करते हुए कहा कि किसी भी कर्मचारी को अभ्यावेदन की अनुशासनहीनता के कारण बर्खास्त नहीं कर सकते। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने अपनी वेतन विसंगति दूर करने के लिए मुख्यमंत्री एवं हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास अभ्यावेदन प्रेषित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह आदेश दिनांक 15 फरवरी 2024 को दिया गया।

can employee be dismissed for complaint in India

याचिकाकर्ता छत्रपाल को बरेली की जिला अदालत में स्थायी आधार पर अर्दली के रूप में चतुर्थ श्रेणी के पद पर नियुक्त किया गया था। बाद में उनका तबादला जिला अदालत की शाखा नजरत में किया गया। नजरत शाखा अदालतों की ओर से जारी किए समन, नोटिस, वारंट आदि जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं के वितरण और उन्हें पूरा करने के लिए जिम्मेदार है। यहां उनसे प्रोसेस सर्वर का काम लिया जा रहा था लेकिन, उन्हें वेतन एक अर्दली का ही दिया जा रहा था। इस बात से पीड़ित होकर छत्रपाल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को अभ्यावेदन भेज कर अपनी आर्थिक परेशानियों के बारे में बताया और नवीन पद के अनुसार वेतन निर्धारण की मांग की। 

employee rights against unfair dismissal India

जिला न्यायालय ने सीधे वरिष्ठ अधिकारियों को अभ्यावेदन भेजना, अनुशासनहीनता माना और जून 2003 में छत्रपाल को सस्पेंड कर दिया गया। उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई और उसके बाद छत्रपाल को बर्खास्त कर दिया गया। छत्रपाल ने इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की परंतु उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ याचिका को खारिज कर दिया की याचिका में कोई दम नहीं है। योग्यताहीन है। इसके बाद नियम अनुसार छत्रपाल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। विद्वान न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ ने इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुनाया। 

supreme court ruling on employee representation

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी कर्मचारी को सिर्फ इसलिए बर्खास्त नहीं किया जा सकता कि उसने उचित प्रक्रिया अथवा माध्यम का पालन किए बिना, सीधे वरिष्ठ अधिकारियों को अभिवादन प्रस्तुत कर दिया है। पीठ ने कहा कि एक चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी, जब वित्तीय कठिनाई में होता है, सीधे वरिष्ठों के सामने अपनी बात रखता है, लेकिन यह अपने आप में बड़े कदाचार की श्रेणी में नहीं आता है, जिसके लिए सेवा से बर्खास्तगी की सजा दी जानी चाहिए। 

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