भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार एवं लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों को कहा है कि आरक्षित जातियों की लिस्ट में संशोधन होना चाहिए। जनजातियों को आरक्षण का लाभ मिला और वह संपन्न स्थिति में आ गई है, उन जातियों को अनारक्षित घोषित कर दिया जाना चाहिए। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने की है।
आरक्षण की समीक्षा और जातियों का निर्धारण, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ में शामिल जस्टिस विक्रम नाथ ने पूछा था कि, इन्हें आरक्षण सूची से निकाला क्यों नहीं जाना चाहिए? उन्होंने कहा, इनमें से कुछ उप-जातियों ने बेहतर किया है और संपन्नता बढ़ी है। उन्हें आरक्षण से बाहर आना चाहिए और सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए। जस्टिस नाथ ने कहा कि ये संपन्न उप-जातियां आरक्षण के दायरे से बाहर निकलकर उन उप-जातियों के लिए अधिक जगह बना सकती हैं जो अधिक हाशिये पर या बेहद पिछड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा, बाक़ी की उप-जातियां जो अब भी पिछड़ी हैं, उन्हें आरक्षण दिया जाए।
ताकतवर और प्रभावी समूह को आरक्षण की सूची से बाहर करना चाहिए
बेंच में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने कहा, एक शख़्स जब आईएएस या आईपीएस बन जाता है तो उसके बच्चे गांव में रहने वाले उसके समूह की तरह असुविधा का सामना नहीं करते हैं। फिर भी उनके परिवार को पीढ़ियों तक आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा। उन्होंने कहा कि ये संसद को तय करना है कि ‘ताक़तवर और प्रभावी’ समूह को आरक्षण की सूची से बाहर करना चाहिए या नहीं।
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