Legal general knowledge and law study notes
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 100 का खंड 06 कहता है कि जब किसी व्यक्ति को यह आशंका हो कि सदोष प्रतिरोध के लिए उस पर हमला किया जा रहा है और उसे कोई लोक अधिकारी (पुलिस अधिकारी या अन्य सरकारी अधिकारी) की सहायता उपलब्ध नहीं है तब वह अपनी रक्षा के लिए निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर सकता है। बचाव के लिए संघर्ष के दौरान यदि हमलावर की मृत्यु भी हो जाती है तो यह क्षमा योग्य अपराध होगा।
रारू बनाम सम्राट
इस संबंध में रारू बनाम सम्राट मामले मे न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अगर किसी व्यक्ति को पुलिस लोक अधिकारी की सहायता उपलब्ध नहीं हो पा रही है, तब वह आत्मरक्षा के लिए अपहरण करने वाले अथवा बंधक बनाने वाले व्यक्ति पर बल प्रयोग कर सकता है। आत्मरक्षा के लिए संघर्ष के दौरान यदि अपहरण करता की मृत्यु हो जाती है, तो इस अपराध को क्षमा कर दिया जाएगा लेकिन यदि किसी भी प्रकार से किसी लोक अधिकारी की सहायता प्राप्त होने की संभावना है अथवा वह सहायता प्राप्त हो रही है तो, इस अधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
उपरोक्त से स्पष्ट होता है कि, कोई व्यक्ति अवैध तरीके से किसी व्यक्ति को निश्चित सीमा के लिए रोककर रखता है या उसे जाने नहीं देता है या उसे बन्धक बनाकर ले जाता है तब बचाव में पीड़ित व्यक्ति निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद), इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com