जबलपुर स्थित हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश ने चतुर्थ श्रेणी महिला कर्मचारी के क्रमोन्नति आदेश को रिवर्स करने वाले अधिकारी के खिलाफ ₹10000 जुर्माना के आदेश दिए हैं। उच्च न्यायालय ने शासन को निर्देशित किया है कि वह दोषी अधिकारी के वेतन से जुर्माना की रकम काटकर पीड़ित महिला कर्मचारी को प्रदान करें।
मुन्नी बाई बागडे विरुद्ध मध्य प्रदेश राज्य
याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी मुन्नी बाई बागडे की ओर से अधिवक्ता सचिन पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता चतुर्थ श्रेणी सेवानिवृत्त कर्मचारी है। वह आकस्मिक निधि पाने वाली कर्मचारी थी। क्रमोन्नति के आधार पर उसका वेतन निर्धारण किया गया था। शासन ने पूर्वव्यापी तिथि से क्रमोन्नति वापस लेने का आदेश जारी किया। दलील दी गई कि कंटिंजेंसी कर्मियों को क्रमोन्नति का लाभ नहीं दिया जा सकता।
कर्मचारियों से क्रमोन्नति वापस लेना अवैधानिक है: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट
अधिवक्ता ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने केएल आसरे के मामले में स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि कार्यभारित और आकस्मिक निधि पाने वाले दोनों प्रकार के कर्मचारियों से क्रमोन्नति वापस लेना अवैधानिक है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों द्वारा जानबूझकर इस तरह अदालतों के आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है। अधिकारियों के ऐसे कृत्य के कारण कर्मचारियों को कोर्ट की शरण लेना पड़ती है।
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने शासन पर 10 हजार रुपये का जुर्माना (मुकदमा व्यय) भी लगाया। कोर्ट ने व्यवस्था दी कि जुर्माना राशि संबंधित दोषी अधिकारी से वसूली जाए और 30 दिन के भीतर याचिकाकर्ता को भुगतान की जाए।
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