मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग इंदौर द्वारा आयोजित राज्य सेवा परीक्षा 2019 की संवैधानिकता कुछ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। उक्त याचिका की अंतिम सुनवाई न्यायमूर्ति श्री सीटी रवि कुमार एवं न्यायमूर्ति श्री संजय कुमार खंडपीठ द्वारा की गई। विशेष याचिका क्रमांक 5817/23 से लिंक अन्य सभी याचिकाओं की भी सुनवाई की गई।
उपस्थित अधिवक्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि माननीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा दिनांक 7 अप्रैल 2022 को पारित आदेश के परिपालन में पूर्व में मुख्य परीक्षा का घोषित रिजल्ट दिनांक 31 दिसंबर 2022 को निरस्त करके दिनांक 10 जनवरी 2022 को प्रारंभिक परीक्षा का पर्व के नियम 2015 के अनुसार रिजल्ट जारी करके, आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान 2721 अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा में शामिल करने हेतु चयनित किया गया था। मध्य प्रदेश पीएससी के इस निर्णय के विरुद्ध दिनांक 10 जनवरी 2022 को घोषित रिजल्ट में अनारक्षित वर्ग के लगभग 132 उम्मीदवारों द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।
इस याचिका की सुनवाई सिंगल बेंच द्वारा की गई थी। हाईकोर्ट ने एमपीपीएससी के निर्णय को निरस्त करके यह व्यवस्था दी थी कि पूर्व में आयोजित परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को डिस्टर्ब किए बिना। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए विशेष मुख्य परीक्षा का आयोजन किया जाए तथा दोनों परीक्षाओं के रिजल्ट का नॉर्मलाइजेशन करके नया रिजल्ट बनाया जाए जिसके आधार पर इंटरव्यू लिए जाएंगे और फाइनल रिजल्ट घोषित किया जाएगा।
हाई कोर्ट की सिंगल बेंच के इस आदेश दिनांक 29 नवंबर 2022 के विरुद्ध अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर द्वारा डिवीजन बेंच में चुनौती दी गई थी। डिवीजन बेंच ने उनकी अपील खारिज कर दी थी। इसके बाद अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह द्वारा आदेशों की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में श्री दीपेंद्र यादव एवं अन्य की ओर से विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने MPPSC 2029 की पूरी भर्ती प्रक्रिया को इन याचिकाओं के निर्णय के अध्यधीन कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट कि खंडपीठ में सुनवाईके दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की दो डिवीजन बेंचो के परस्पर विरोधाभासी फैसला पारित किए गए हैं, डिवीजन बेंच क्रमांक 3 द्वारा याचिका क्रमांक 807 /2021 में दिनांक 7/4/ 2022 को पारित फैसले में स्पष्ट किया गया है कि परीक्षा के प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सिर्फ मेरीटोरियस प्रतिभावान छात्रों से ही भरा जाएगा, चाहे वह किसी भी वर्ग के हो अर्थात अनारक्षित पदों का जन्म मेरीटोरियस छात्रों से ही होता है। वहीं दूसरी ओर जस्टिस शील नागू की खंडपीठ द्वारा हाई कोर्ट के 1255 पदों की भर्ती के मामले में जस्टिस सुजय पॉल की खंडपीठ के विरुद्ध निर्णय पारित करके स्पष्ट किया है कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान छात्रों को अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं किया जाएगा। फाइनल सिलेक्शन लिस्ट बनने के बाद आरक्षण का लाभ दिया जाएगा।
जबकि मध्य प्रदेश राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 का नियम कर स्पष्ट प्रावधान करता है कि प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा मे अनारक्षित पदों को मेरीटोरियस अभ्यर्थियों से ही भरा जाएगा चाहे वह किसी भी वर्ग के हो। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस शील नागू द्वारा पर फैसला पर खेद व्यक्त किया तथा उक्त फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टा संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 तथा परीक्षा नियम 2015 के विरुद्ध माना।
हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच क्रमांक 3 द्वारा दिनांक 7 अप्रैल 2022 को पारित फैसले को संविधान सम्मत मानते हुए तथा उक्त फैसले के आधार पर लोक सेवा आयोग द्वारा तैयार किए गए परीक्षा परिणाम को वैध करार दिया गया तथा लोक सेवा आयोग द्वारा डिवीजन बेंच क्रमांक 3 के आदेश के अनुरूप अपनाई गई समस्त समस्त प्रक्रिया को उचित मानते हुए हाई कोर्ट की सिंगल बेंच एवं रिट अपील में पारित आदेशो की संवैधानिकता के परीक्षण हेतु उक्त याचिका फैसला हेतु रिजर्व कर ली गई है। याचिका कर्ताओं की ओर से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गौरव अग्रवाल,रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह तथा समृद्धि जैन ने की।
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