Legal general knowledge and law study notes
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 96 से 106 एवं भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 34 से 44 तक भारतीय नागरिकों को निजी प्रतिरक्षा के अधिकार दिए गए है। अर्थात कोई व्यक्ति आक्रमणकारियों के सामने कायरों की तरह न मरे। पर्याप्त बल द्वारा उनका मुकाबला करे। इस कानूनी अधिकार में समय-समय पर बहुत परिवर्तन हुए है जानिए सुप्रीम कोर्ट के इससे संबंधित मूलभूत सिद्धांत क्या है:-
दर्शन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले मे सुप्रीम कोर्ट द्वारा निजी प्रतिरक्षा अधिकार के संबंध में निम्न सिद्धांत प्रतिपादित किए है जानिए :-
1. यह अधिकार केवल उस व्यक्ति को ही प्राप्त है जो स्वयं को अचानक किसी संकटमय स्थिति में पता है।
2. इस अधिकार के लिए यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपराध घटित हुआ हो, अपराध घटित होने की आशंका मात्र निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग हेतु पर्याप्त है।
3. जैसे ही संकट उत्पन्न होता है निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ हो जाता है और यह तब तक बना रहेगा जब तक कि संकट की आशंका समाप्त नहीं हो जाती।
4. कानून व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं करता कि वह स्वयं पर होने वाले हमले का आंकलन क्रमवार गणितीय निश्चितता से करे I ऐसा अनुमान लगाना वास्तविकता से परे होगा।
5. न्यायालय में यदि कोई व्यक्ति अपने बचाव में निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का दावा प्रस्तुत नहीं भी करता है तो उचित होने पर न्यायालय स्वंय उसके इस अधिकार पर विचार करेगा।
6. अपनी प्रतिरक्षा में किए गए बल का प्रयोग आवश्यकता से अधिक नहीं होना चाहिए, बल प्रयोग का अनुपात सम्भावित हानि या क्षति की तुलना मे अधिक नहीं किया गया हो।
7. भारतीय दण्ड संहिता में निजी प्रतिरक्षा का बचाव उसी दशा में उपलब्ध होगा जब अवैध अपकृत्य कोई अपराध हो।
8. परिस्थितियों में स्वयं के जीवन को संकट आसन्न होने की दशा में व्यक्ति अपनी निजी शारीरिक प्रतिरक्षा हेतु हमलावर की मृत्यु तक कर सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 , इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com