भारत की धार्मिक परंपराओं में तिलक का विशेष महत्व है। केवल भगवान के माथे पर ही नहीं बल्कि भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार प्रत्येक पुरुष के माथे पर तिलक और महिलाओं के माथे पर बिंदी होना चाहिए। सभी इष्ट देवताओं के मस्तक पर तिलक होरिजेंटल यानी नीचे से ऊपर की तरफ लगाया जाता है परंतु शिवलिंग पर लगाए जाने वाला तिलक (जिसे त्रिपुंड कहते हैं) वर्टिकल लगाया जाता है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों किया जाता है। क्या शिव भक्त खुद को दूसरों से अलग प्रदर्शित करते हैं या फिर इसके पीछे कोई लॉजिक भी है। आइए धार्मिक और विज्ञान की किताबों से पता करते हैं:-
त्रिपुण्ड्र शैव परम्परा का तिलक है
भारत की प्राचीन पूजा पद्धतियों में वैष्णव एवं शैव दो परंपराएं हैं। भगवान शिव के मस्तक पर या फिर शिवलिंग पर लगाया जाने वाला त्रिपुंड (आड़ी रेखाएं) शैव परंपरा का तिलक कहा जाता है। भगवान के मस्तक पर सफेद चंदन या भस्म का त्रिपुंड लगाया जाता है जबकि शैव परंपरा के सन्यासी अपने माथे पर खास प्रकार से तैयार की गई भस्म या फिर सामान्य चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं।
त्रिपुण्ड्र का वैज्ञानिक महत्व
तिलक लगाने के लिए हल्दी या रोली सहित कई पदार्थों का उपयोग किया जाता है परंतु त्रिपुंड या तो भस्म का होता है या फिर चंदन का। शेष किसी भी प्रकार के पदार्थ या रंग वर्जित है।
चंदन, मनुष्य के मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। उग्र स्वभाव वाला व्यक्ति यदि माथे पर चंदन लगाए तो उसका व्यवहार सौम्य में हो जाता है।
त्रिपुंड के लिए भस्म का मतलब किसी भी लकड़ी की राख नहीं होता बल्कि शैव परंपरा में भस्म को विशेष प्रकार से तैयार किया जाता है। इसके कारण मच्छर से लेकर जहरीले शाम तक कोई भी उस शरीर के पास नहीं आता, जिस पर बस भस्म लगी होती है।
मेडिकल साइंस के अनुसार माथे पर जहां तिलक लगाया जाता है पिनियल ग्रन्थि का स्थान है, और यहाँ उद्दीपन होने से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा, इस से हमारे शरीर मे स्थूल सूक्ष्म अवयव जागृत हो जाते हैं।
त्रिपुण्ड्र का आध्यात्मिक महत्व
प्रत्येक धार्मिक आयोजनों में अथवा प्रतिदिन त्रिपुण्ड्र धारण करने से हमारी रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, और उत्थान के ओर अग्रसर होती है।
त्रिपुंड धारण करने वाले व्यक्ति में बेईमानी एवं लालच की भावना समाप्त होने लगती है और वह ऐसी संपन्नता की ओर आगे बढ़ता है जो समाज के लिए कल्याणकारी भी होती है।
त्रिपुंड से मस्तिष्क में सात्त्विकता का प्रवाह होता है। अपराध या घोटाला करने के आइडिया दिमाग में नहीं आते बल्कि समाज के लिए कल्याणकारी स्टार्टअप के आइडिया दिमाग में आते हैं।
त्रिपुण्ड्र शरीर पर कहां कहां लगाया जाता है
मुख्यतः त्रिपुंड मस्तक पर लगाया जाता है। इसके साथ शरीर के 32 अंगों पर लगाया जा सकता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है, कि समस्त अंगों में विभिन्न देवी देवताओं का वास होता हैं। घने जंगलों में जहरीले जीव जंतुओं के बीच यदि रहना है तो शरीर के सभी 32 अंगों पर त्रिपुंड धारण करना होता है।
त्रिपुण्ड्र की 3 रेखाओं का महत्व
✔ प्रथम रेखा :-अकार, गाहॄपतय, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म , क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रातः कालीन हवन, और महादेव।
✔ द्वितीय रेखा :- ऊँकार , दक्षिणाग्नि, सत्वगुण , आकाश, अंतरात्मा, इच्छाशक्ति, मध्याह्न हवन , और महेश्वर।
✔ तृतीय रेखा :- मकार , आहवनीय अग्नि, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा , ज्ञानशक्ति, सामवेद , तृतीय हवन और शिवजी।
त्रिपुण्ड्र बनाने की विधि एवं उसका आकार
मध्य की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्तिपूर्वक मंत्रोच्चार के साथ बाएं नेत्र से दाएं नेत्र की ओर लगाना चाहिए। यदि त्रिपुंड मन्त्र ज्ञात न हो तो ॐ नमः शिवाय कह कर त्रिपुण्ड्र धारण किया जाना चाहिए। इसका आकार बाए नेत्र से दाएं नेत्र तक ही होना चाहिए। अधिक लंबा त्रिपुण्ड्र तप का और अधिक छोटा त्रिपुण्ड आयु का क्षय करता है।