गौरैया मर गई तो अकाल पड़ जाएगा, चीन में ढाई करोड़ लोग मर गए थे - GK TODAY

Bhopal Samachar

डिजिटल होते इंडिया के किसानों को यह समझना बहुत जरूरी हो गया है कि खेतों में फसल डाउनलोड नहीं की जा सकती। इसकी पैदावार करनी पड़ती है। खेतों में फसल तभी होती है जब प्रकृति में संतुलन और पर्यावरण में जहरीली गैसों की मात्रा नियंत्रण में रहती है। भारत में किसान गौरैया चिड़िया को मार रहे हैं। उन्हें समझाने की जरूरत है कि यदि गौरैया चिड़िया मर गई तो अकाल पड़ जाएगा। खेत में फसल होगी लेकिन फसल में दाने नहीं होंगे। चीन में यह बेवकूफी की जा चुकी है और इसके कारण ढाई करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है। इतिहास की घटनाओं से सीखने की जरूरत है। 

भारत के डिजिटल किसान गौरैया माता के दुश्मन

भारत के पारंपरिक कृषि क्षेत्र में गौरैया चिड़िया को गौरैया माता कहा जाता है। जब वह खेत पर आकर बैठी है तो किसान खुश हो जाता है। गौरैया चिड़िया को आकर्षित करने के लिए कई प्रकार के उपक्रम किए जाते हैं परंतु डिजिटल इंडिया के किसान इन सब बातों को नहीं समझते। गौरैया चिड़िया की उपस्थिति इस बात को प्रमाणित करती है कि पर्यावरण में प्रदूषण नहीं है। गौरैया चिड़िया की अकाल मृत्यु इस बात का इंडिकेटर होती है कि पर्यावरण में विद्युत तरंगों की संख्या बहुत अधिक हो गई है और अब यह इंसानों को प्रभावित करने वाली है। खेतों में गौरैया चिड़िया फसलों को लगने वाले कीड़े खा जाती है परंतु हल चलाने के बजाए जिम में वेट लिफ्टिंग करने वाले किसान यह नहीं जानते और खेत में आने वाली गौरैया चिड़िया को या तो भगा देते हैं या फिर जहरीले दाने खिलाकर मार डालते हैं। ऐसे किसानों को चीन की कहानी सुनाने की जरूरत है। 

चीन में गौरैया चिड़िया को मारने का अभियान चलाया गया था 

बात 1958 की है जब चीन के माओ जेडोंग ने चीन में एक अभियान शुरू करवाया था जिसे four pests campaign का नाम दिया गया था। जिसमें मच्छर-मक्खी, चूहा और गौरैया को मारने का फरमान जारी किया गया। उनका कहना था कि गौरैया खेतों से सारा अनाज खा जाती है इसलिए इसे भी मारना जरूरी है। मच्छर, मक्खी और चूहे के नुकसान तो सबको ही पता हैं कि मच्छर मलेरिया फैलाते हैं, मक्खियां हैजा फैलाती हैं और चूहे प्लेग फैलाते हैं। चीन के वैज्ञानिकों का मानना था कि इनका सफाया करना ही इंसानों के हित में है। 

देशभक्ति के नाम पर गौरैया चिड़िया का सामूहिक शिकार किया गया

चीन में उस समय कथित देशभक्त क्रांतिकारियों ने जनता के बीच में इस अभियान को एक आंदोलन की तरह चलाया। लोग बर्तन व ड्रम बजा बजाकर चिड़ियों को उड़ाते रहते और लोगों की पूरी कोशिश होती कि चिड़ियों को खाना ना मिले और बैठने की जगह ना मिले। इससे गौरैया कब तक उड़ती आखिर थक कर गिर जाती और उसे मार दिया जाता।

गौरैया चिड़िया को मारने वाले को सरकार से इनाम मिलता था

इसी प्रकार ढूंढ-ढूंढ कर उनके अंडों को फोड़ दिया गया और इस प्रकार उनकी क्रूरता का शिकार चिड़िया व उसके छोटे-छोटे बच्चों को भी होना पड़ा। हालत यह थी कि जो शख्स जितनी गौरैया को मारता उसे स्कूल, कॉलेज के आयोजनों में मेडल और इनाम दिए जाते।

पोलैंड के दूतावास में गौरैया चिड़िया के सबसे बड़े समूह को घेरकर मारा गया

गौरैया को यह बात समझ आ गई थी कि अब उनके लिए कोई भी सुरक्षित जगह नहीं है इसलिए एक बार बहुत सारी गौरैया झुंड बनाकर पोलैंड के दूतावास में जा छूपी, परन्तु गौरैया को मारने वाले वहां भी पहुंच गए और उनके सिर पर खून सवार था उन्होंने दूतावास को घेर लिया और इतने ड्रम बजाए कि उड़ते उड़ते थक करके सारी गौरैया गिर कर मर गईं।

चीन में गौरैया चिड़िया को मारने से क्या परिणाम हुआ

अब चीन के लोग खुश थे कि उनका अनाज खाने वाली गौरैया से छुटकारा मिल गया है और अब अनाज सुरक्षित रहेगा परंतु क्या अनाज सुरक्षित रहा, नहीं बल्कि उल्टा हो गया। अगले दो साल आते-आते 1960 तक लोगों को समझ आ चुका था कि उनसे कितनी बड़ी गलती हो गई है। गौरैया अनाज नहीं खाती थी, बल्कि फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को खाती थी। गौरैया चिड़िया के कारण अनाज सुरक्षित था। गौरैया चिड़िया को मार दिया गया तो अनाज भी नष्ट होने लगा।

सिर्फ एक गलती के कारण चीन में ढाई करोड़ लोग मारे गए

गौरैया के मर जाने से नतीजा यह हुआ कि धान की पैदावार बढ़ने की बजाय, तेजी से घटने लगी। टिड्डी और दूसरे कीड़ों की तादाद तेजी से बढ़ने लगी और उनकी आबादी पर लगाम लगाना मुश्किल हो गया। फसलें खराब हो गईं और बुरी तरह से अकाल पड़ गया और इस अकाल में ढाई करोड़ लोग मारे गए। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article.

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