दहेज एक्ट में समझौता नहीं होता लेकिन दोषी पति को रिहाई मिल सकती है - Legal advice

आईपीसी की धारा 498A (दहेज एक्ट) एक गंभीर अपराध है और इसमें समझौते का प्रावधान नहीं है। अपराध साबित होने पर अनिवार्य रूप से सजा दी जाती है, लेकिन भारतीय कानून व्यवस्था की आत्मा हमेशा यह चाहती है कि पति पत्नी के विवाद में समझौता हो जाए। यही कारण है कि राजीनामा योग्य न होने के बावजूद दहेज प्रताड़ना के दोषी पति एवं अन्य ससुराल वालों को रिहाई मिल सकती है।

मनोहर सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य वाद:- 

सुप्रीम कोर्ट ने उदारवादी रुख अपनाते हुए अपराधी (अपीलार्थी) के दण्ड को भोगे गए दण्ड में परिवर्तन कर दिया। अपीलार्थी की पत्नी ने भूली- बिसरी बातों और झगड़ों को भुलाकर शांतिमय जीवन यापन करने हेतु परस्पर सहमती व्यक्त की थी। उच्च न्यायालय ने अपीलार्थी की IPC की धारा 498क के अंतर्गत की गई दोषसिद्धि को अपास्त करने में अपनी असमर्थता प्रकट की क्योकि यह अपराध समझौता योग्य नहीं था परन्तु उच्च न्यायालय ने उस दंड को 2 वर्ष से घटाकर 6 माह कर दिया।

इस मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट देवास ने आरोपी एवं उसके माता-पिता को दण्ड संहिता की धारा 498-क तथा दहेज निषेध एक्ट, 1961 की धारा 04 के अंतर्गत प्रत्येक को दो वर्ष के कारावास एवं 500 रुपये जुर्माने से दण्डित किया था।

उक्त निर्णय के विरुद्ध अपील में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने आरोपी के माता पिता को दोषमुक्त कर दिया एवं आरोपी के कारावास की अवधि को दो वर्ष से घटाकर छ: माह कर दिया।

अपीलार्थी (आरोपी) ने इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की एवं इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अभिकथन किया कि- "यदि पति-पत्नी के बीच वास्तविक समझौता किया गया है तो आरोपी (पति) के विरुद्ध दायर किया गया क्रूरता संबधी आपराधिक परिवाद वापस लिया जा सकता है भले ही अपराध समझोता योग्य न हो।

उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि आरोपी और उसकी पत्नी का विवाह वर्ष 2007 में सात वर्ष पूर्व हुआ था। आरोपी को क्रूरता तथा दहेज की माँग इन दोनों अपराधों के लिए छ: माह के कारावास से दण्डित किया है। आरोपी सात दिनों की कारावास भोग चुका है। अतः परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसके दंड को भोगे गए दण्ड में लघुक्रत किया जाना उचित होगा। यदि वह क्षतिपूर्ति के रूप मे पत्नी को ढाई लाख रुपए की राशि देने के लिए सहमत हो, उक्त राशि का संदाय किया जाने पर अपीलार्थी को कारावास से तत्काल रिहा कर दिया जाए। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।

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