मध्य प्रदेश की गुना शिवपुरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी हार मान चुकी है। जो काम गुना के कांग्रेस नेताओं को करना था, वह गुना के पत्रकार कर रहे हैं। खुलासा किया है कि, जिला निर्वाचन अधिकारी ने ऐसे कर्मचारियों को पोलिंग ऑफीसर बना दिया है, जो पांचवी पास भी नहीं है। माली, ड्राइवर, भृत्य इत्यादि चतुर्थ श्रेणी पद पर पदस्थ हैं।
नपाध्यक्ष ने भी कलेक्टर को पत्र लिखा है
गुना शिवपुरी लोकसभा सीट पर वोटिंग की तारीख 7 मई है। स्थानीय पत्रकारों ने अब तक लगभग 20 ऐसे कर्मचारियों को खोज निकाला है, जिनकी शैक्षणिक योग्यता हाई स्कूल भी नहीं है। इनमें से कई ने कक्षा 5 की परीक्षा तक नहीं दी। अपना नाम बड़ी मुश्किल से लिख पाते हैं। ऐसे लोगों को साक्षर कहा जाता है, शिक्षित नहीं, इन्हें पी-2 यानि पोलिंग ऑफिसर क्रमांक 2 की जिम्मेदारी दी जाएगी। नगर पालिका में यह कर्मचारी माली, ड्राइवर, मैकेनिक, गैंगमैन के पद पर हैं। इनमें 14 ने कलेक्टर को आवेदन देकर अनुरोध किया है कि उन्हें किसी अन्य काम पर लगा दिया जाए। नपाध्यक्ष सविता गुप्ता ने भी कलेक्टर को पत्र लिखकर वस्तुस्थिति बताई है।
पोलिंग ऑफीसर क्या काम करता है
मास्टर ट्रेनर डॉ. निरंजन श्रोत्रिय ने बताया कि मतदान केंद्र पर तीन पोलिंग ऑफिसर और एक पीठासीन अधिकारी होते हैं। पी-1 यानि पोलिंग ऑफिसर क्रमांक एक का काम मतदाता की पहचान करना होता है। पी-2 के पास मतदाता रजिस्टर रहता है। इसके पांच कॉलम में उसे मतदाता का क्रमांक, पहचान पत्र का नाम, अगर वोटर आईडी नहीं है तो अन्य आईडी के चार अंक रजिस्टर में दर्ज होते हैं। इसके बाद मतदाता के हस्ताक्षर लिए जाते हैं। आखिरी कॉलम में वह टिप्पणी दर्ज करता है। उंगली में स्याही लगाने और मतदाता पर्ची जारी करने की जिम्मेदारी भी उसी की रहती है। आमतौर पर पी-1 पर द्वितीय श्रेणी व पी-2 पर तृतीय श्रेणी के कर्मचारी की ड्यूटी लगती है।
गलती या गड़बड़
सबसे बड़ा और इकलौता प्रश्न है कि यह कोई गलती है या फिर जानबूझकर की गई गड़बड़। जिस पोलिंग बूथ पर इन कर्मचारियों की नियुक्ति होगी वहां का डब्बा गुल होना तो पक्का है, या फिर इनका सिर्फ नाम लिखा गया है, पोलिंग बूथ पर उनकी जगह कोई दूसरा व्यक्ति बैठेगा ?। सवाल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इन कर्मचारियों ने अधिकारी बनने के लालच में ट्रेनिंग नहीं ली बल्कि इनका नाम लिस्ट में शामिल किया गया है। यह पहली बार हुआ है, यानि पिछली लिस्ट वाला बहाना भी नहीं बना सकते। ट्रेनिंग के दौरान उनकी योग्यता और क्षमता सामने आ ही गई थी, इसके बावजूद इन्हें हटाया नहीं गया। क्या कारण है जो गड़बड़ी सामने आने के बाद भी जिला निर्वाचन अधिकारी इसमें सुधार नहीं कर रहे हैं।
क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है और यह पता लगाने की भी जरूरत है कि, पूरी लोकसभा में इस प्रकार की टोटल कितनी नियुक्तियां हुई है।
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