मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों में इस तरह के कई मामले देखने को मिले हैं। शासकीय कर्मचारी एवं अधिकारियों को पॉलिटिक्स करने का अधिकार नहीं है लेकिन फिर भी वह सोशल मीडिया पर पॉलिटिक्स कर बैठते हैं। इस बार मध्य प्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, डिप्टी कलेक्टर श्री हषर्ल चौधरी नेतागिरी कर बैठे। श्री चौधरी वर्तमान में विदिशा जिले के सिरोंज अनुविभागीय क्षेत्र में SDM के पद पर पदस्थ हैं।
SDM हषर्ल चौधरी का विवादित बयान
पिछले दिनों विदिशा जिले की एडीजे कोर्ट द्वारा SDM की कुर्सी कुर्क करने के आदेश दिए गए थे। उन पर आरोप था कि उन्होंने न्यायालय के आदेश दिनांक 27 फरवरी 2023 का पालन नहीं किया और किसानों को न्यायालय के आदेश के अनुसार मुआवजा नहीं दिया। दिनांक 23 अप्रैल 2024 को SDM की कुर्सी की कुर्की के बाद SDM श्री हषर्ल चौधरी ने सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखते हुए लिखा कि "जनता के पैसे बचाने के लिए हाईकोर्ट में अपील की है। यदि मुझे भी कुर्क किया जाए तो सहर्ष तैयार हूं।"। कोर्ट ने श्री चौधरी के इस स्टेटमेंट को न्यायालय की अवमानना माना है और नोटिस जारी कर दिया है।
जनता की बात करना न्यायालय की अवमानना कैसे हो सकती है
श्री हषर्ल चौधरी का उपरोक्त बयान स्पष्ट रूप से न्यायालय की अवमानना है। यदि श्री हषर्ल चौधरी को लगता है कि उनका बयान किसी भी नियम और कानून का उल्लंघन नहीं करता है तो उन्हें न्यायालय के नोटिस का जवाब भी इसी अंदाज में देना चाहिए। कोर्ट ने तीन दिन का समय दिया है देखते हैं श्री चौधरी के तेवर कैसे रहते हैं। फिलहाल अपन नियम और कानून की बात कर लेते हैं।
सरकारी अधिकारी को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होती
श्री हषर्ल चौधरी, एक आम नागरिक नहीं है बल्कि राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। उन्हें अभिव्यक्ति की वह आजादी प्राप्त नहीं है जो भारत के आम नागरिक को प्राप्त है। राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी शासन का प्रतिनिधि होता है। वह एक कड़ी परीक्षा पास करके इस पद के लिए चयनित होता है परंतु उसकी नियुक्ति से पहले उसे शपथ लेनी होती है कि वह भारत के संविधान, विधि और नियमों का पालन करेगा। न्यायपालिका, और विधायिका के आदेशों का अक्षरश: से पालन करेगा।
एक राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी (कार्यपालिका) होने के नाते उन्हें केवल न्यायालय के आदेश का पालन करना था। न्यायालय ने कहा था कि किसानों को मुआवजा दिया जाए, तो किसानों को मुआवजा दिया जाना चाहिए था। यदि सरकार (विधायिका) को लगता है कि न्यायालय ने गलत मुआवजा का निर्धारण कर दिया है तो वह न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील कर सकती थी। यह अपील निर्धारित अवधि में हो जानी चाहिए थी। यदि अपील हो जाती तो SDM की कुर्सी की कुर्की के आदेश ही जारी नहीं होते, लेकिन SDM श्री हषर्ल चौधरी ने समय रहते सरकार को अपील के लिए कन्वेंस नहीं किया। हाई कोर्ट में अपील नहीं हुई।
न्यायालय चाहता तो पूरे SDM ऑफिस की कुर्की के आदेश जारी कर देता क्योंकि मुआवजा करोड़ों में है, लेकिन न्यायालय ने केवल सांकेतिक कार्रवाई की। इसके बावजूद श्री चौधरी ने सोशल मीडिया पर जाकर इस तरह का स्टेटमेंट दिया जैसे वह SDM नहीं बल्कि विधायक है।
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