वंदे भारत व शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में यात्रियों से हर सुविधा का पैसा लिया जाता है। इसी के आधार पर किराया निर्धाारित किया जाता है। रेलवे ने तय किया है कि यात्रियों को 1 लीटर नहीं बल्कि आधा लीटर की ड्रिंकिंग वाटर बॉटल दी जाएगी, लेकिन किराए में साढ़े सात रुपए की कमी नहीं की जाएगी।
जल संरक्षण के नाम पर खर्चा कटौती का प्लान
वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबन्धक सौरभ कटारिया ने बताया कि भारतीय रेलवे ने यह फैसला पानी की बर्बादी को रोकने के लिए लिया है। रेलवे प्रशासन ने महसूस किया है कि ज्यादातर लोग सफर के दौरान 1 लीटर पानी की बोतल ले तो लेते हैं, लेकिन सफर पूरा होने तक वे उसे खत्म नहीं कर पाते हैं। इसलिए बोतल में काफी पानी यूं ही छोड़कर वे अपने गंतव्य पर पहुंचने के बाद ट्रेन से उतर जाते हैं। इससे पीने के पानी की बर्बादी होती है। इसलिए जल संरक्षण के महत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारतीय रेलवे ने यात्रियों के लिए पीने के पानी की बर्बादी को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
किराया कम करके पूरी बोतल पेड कर दो
भारत में 22500 ट्रेनों में हर रोज ढाई करोड़ नागरिक यात्रा करते हैं। सभी ट्रेनों में यात्रियों को पानी की बोतल नहीं दी जाती। केवल वंदेभारत, शताब्दी और राजधानी जैसी ट्रेनों में ही यात्रियों से उसी बर्थ या कुर्सी पर खाना और पानी उपलब्ध करवाया जाता है। इसके बदले में रेलवे उत्पाद की कीमत और सेवा शुल्क भी लेता है। पानी बचाने का आइडिया अच्छा है, लेकिन इसे ईमानदारी तभी कहा जा सकता है जब किराए में से आधा लीटर पानी का पैसा कम कर दिया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो इसे रेलवे की बेईमानी कहा जाएगा।
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