मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 अधिनियम में एक और संशोधन की तैयारी की जा रही है। इससे पहले सन 2021 में एक संशोधन हुआ था। यहां उल्लेख करना अनिवार्य है कि 25 जनवरी 1994 को मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993 लागू किया गया था। यह अधिनियम, भारत के संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम 1992 के अनुरूप बनाया गया था। इसी के कारण मध्य प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था स्थापित हुई थी।
मध्य प्रदेश पंचायत राज और ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की 14 धाराओं में बदलाव
2021 के बाद 2024 में मध्य प्रदेश पंचायत राज और ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की 14 अलग-अलग धाराओं में बदलाव प्रस्तावित किए हैं। विभाग ने सभी जिलों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत से सुझाव मांगे हैं। कहा है कि इन पंचायत राज अधिनियम की इन धाराओं में होने बदलाव के बारे में सबसे बेहतर सुझाव फील्ड में काम करने वाले अफसर ही दे सकते हैं। इसलिए अफसरों के सुझाव के बाद इस बारे में फैसला किया जाएगा। आचार संहिता खत्म होने के बाद इसको लेकर जनप्रतिनिधियों के भी सुझाव बुलाए जा सकते हैं।
Madhya Pradesh Panchayat Raj Act की कौन सी धारा में बदलाव होगा
संचालक पंचायत राज संचालनालय द्वारा सभी सीईओ जिला पंचायत से मध्यप्रदेश पंचायत राज और ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की जिन धाराओं में बदलाव को लेकर सुझाव मांगे गए हैं, उनमें अधिनियम की धारा 17, 25, 32, 43, 55, 69, 75, 76 क, 77 क, 84, 117, 125, 126 और 127 में बदलाव प्रस्तावित है। साथ ही यह भी कहा है कि इनके अतिरिक्त अन्य किसी धारा में संशोधन किए जाने की जरूरत है तो उसके सुझाव भी अभिमत के साथ एक सप्ताह में शासन को भेजे जाएं।
वर्तमान में क्या होता है
मध्यप्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 की धारा 17 (5) के अन्तर्गत कार्यवाही करने के लिए उप खंड अधिकारी (राजस्व) को सक्षम प्राधिकारी घोषित किया गया है। राज्य निर्वाचन आयोग के चुनाव के समय सक्षम प्राधिकारी द्वारा उप सरपंचों के निर्वाचन के लिए तारीख नियत की जाएगी, जिसकी सूचना संबंधित सक्षम प्राधिकारी को दी जाएगी।
धारा 25 और धारा 32 के अनुसार जिन जनपद पंचायतों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या आधे से कम है वहां पर अन्य पिछडे़ वर्गों के लिये 25 प्रतिशत स्थान आरक्षित किए जा सकेंगे। जिले में जनपद पंचायत के अध्यक्ष का पद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए उसी अनुपात में आरक्षित किया जायेगा जो कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या और पूरे जिले पंचायत क्षेत्र की कुल जनसंख्या के बीच है। इन जनपद अध्यक्ष के कुल पदों में से एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित रखे जायेंगे।
धारा - 55(1) में कहा गया है कि इस धारा के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, कोई भी व्यक्ति ग्राम पंचायत की लिखित अनुज्ञा के बिना और इस अधिनियम के अधीन इस संबंध में बनाई गई उपविधियों के अनुसार के सिवाय, किसी भवन का परिनिर्माण नहीं करेगा या किसी विद्यमान भवन में कोई परिवर्तन या परिवर्धन नहीं करेगा या किसी भवन का पुनर्निर्माण नहीं करेगा।
धारा - 69 एवं 72 में कहा गया है कि पंचायतों के स्वयं के वित्तीय स्त्रोतों को बढ़ाने के उददेश्य से पंचायत स्तर पर कर लगाने का अधिकार दिया गया है।
धारा 76 क में प्रावधान है कि जिला पंचायत राज निधि में भू राजस्व समेत अन्य करों की वसूली का पैसा जमा होगा जो जिला स्तर पर पंचायतों के बीच वितरित किया जाएगा।
धारा 77 क के अंतर्गत संपत्ति कर को ग्राम सभा द्वारा अधिरोपित किए जाने वाले अनिवार्य कर में शामिल किए जाने का प्रावधान है। इसमें संपत्ति कर वसूली के अधिकार दिए गए हैं।
धारा 125 और 127 में किसी ग्राम पंचायत का मुख्यालय बदला जाना या परिसीमन किया जाना या फिर नगरीय क्षेत्र में आने के कारण या डूब में आ जाने के कारण उसकी सीमा में बदलाव किए जाने की व्यवस्था है जिसकी आबादी 1000 है। इसके साथ परिसीमन के साथ पंचायत राज निर्वाचन का भी प्रावधान है।
सुझावों के परीक्षण के बाद तैयार होंगे नियम और विधानसभा में मंजूरी
पंचायत राज संचालनालय द्वारा संशोधन के लिए आने वाले सुझावों का परीक्षण किया जाएगा और इसे विभाग के मंत्री और अपर मुख्य सचिव के साथ मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जाएगा। इसके बाद इसके लिए नियम तैयार कर पहले कैबिनेट और फिर विधानसभा में विधेयक लाकर बदलाव को मंजूरी दी जाएगी। इस काम में छह माह से एक साल तक का समय लग सकता है।
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