मध्य प्रदेश में गंभीर एवं अति कुपोषण (SAM) सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है। 2019-21 में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के लगभग 6.5% बच्चे गंभीर एवं अति कुपोषण से प्रभावित थे। इस तरह लाखों बच्चे कुपोषण के कारण अनेकों स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं और उनका विकास प्रभावित हो रहा है।
गंभीर एवं अति गंभीर कुपोषण की पहचान - Identification of severe and very severe malnutrition
गंभीर एवं अति कुपोषण की पहचान के लिए आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और ANM को प्रशिक्षित किया गया है, अतः अपने आंगनवाड़ी केंद्र या नजदीकी स्वास्थ्य सुविधा में जाया जा सकता है। जिसके लिए निम्नलिखित मानदंडों का उपयोग किया जाता है:
वजन-लंबाई या ऊंचाई अनुपात (Weight-for-length/Height): बच्चे का वजन उसकी लंबाई या ऊंचाई के हिसाब से मापा जाता है। यदि वजन-लंबाई या ऊंचाई के अनुपात से जेड-स्कोर -3 SD (Standard Deviation) से कम है, तो उसे गंभीर एवं अति कुपोषित माना जाता है।
उम्र के अनुसार वजन (weight for age): छः माह से कम उम्र के बच्चों के लिए बच्चे की उम्र के के अनुसार वजन के आधार पर जेड स्कोर निकला जाता है, और यदि जेड स्कोर - 3 SD से कम होने पर गंभीर एवं अति कुपोषित की श्रेणी में रखा जाता है।
मध्य ऊपरी बांह परिधि (Mid-Upper Arm Circumference, MUAC): 6 महीने से 5 साल के बच्चों के लिए। यदि MUAC 115 मिमी से कम है, तो बच्चे को गंभीर एवं अति कुपोषित की श्रेणी में रखा जाता है।
एडिमा (Edema): दोनों पैरों में पिटिंग एडिमा (Pitting Edema) की उपस्थिति भी गंभीर एवं अति कुपोषित का एक संकेत है। इसे जांचने के लिए, अंगूठे से पैर के शीर्ष पर कुछ सेकंड के लिए दबाव डालकर देखा जाता है कि क्या दबाव हटाने के बाद निशान बना रहता है।
अन्य महत्वपूर्ण संकेत: भूख की कमी (Loss of Appetite), सामान्यीकृत पतलापन (Generalized Wasting), व्यवहार में बदलाव (Changes in Behavior) जैसे बच्चा सुस्त, निराश, या अनुत्साही हो सकता है।
गंभीर एवं अति गंभीर कुपोषण - सावधानियां और रोकथाम - Precautions and Prevention
1. मातृ पोषण और स्वास्थ्य: गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए उचित पोषण और स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। स्वस्थ और संतुलित आहार जैसे प्रोटीन (मांस, मछली, अंडे, दूध, दाल, और सोयाबीन), कार्बोहाइड्रेट्स और फाइबर (साबुत अनाज, ब्राउन राइस, ओट्स, और फलियां), विटामिन और मिनरल्स (हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, नट्स, और गिरी) युक्त भोजन खाएं। खासकर फोलिक एसिड और आयरन की आवश्यकता पूरी करने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां (मुनगा, चौलाई, लाल भाजी, पालक इत्यादि), खट्टे फल, भुने चने, अंकुरित दालें और अनाज, खजूर इत्यादि का सेवन करें। समय-समय पर टीके लगवाएं और नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं।
2. स्तनपान: जन्म के तुरंत बाद माँ का दूध पिलाएं। पहले छह महीने तक शिशु को विशेष रूप से केवल स्तनपान कराना चाहिए और उसके बाद दो साल या उससे अधिक तक उपयुक्त पूरक खाद्य पदार्थों के साथ-साथ स्तनपान जारी रख कर गंभीर एवं अति कुपोषण को रोक सकता है।
3. पूरक आहार: शिशु के छह महीने की उम्र में पौष्टिक और सुरक्षित पूरक खाद्य पदार्थों का परिचय कराना और स्तनपान जारी रखना गंभीर एवं अति कुपोषण को रोकने में मदद करता है।
छ: माह के बाद: छः महीने की आयु तक बच्चा अन्य खाद्य पदार्थों को खाने और पचाने के लिए विकसित हो चुका होता है साथ ही बड़े हो रहे बच्चे की ऊर्जा और पोषक तत्वों की जरूरतें बढ़ती हैं जो केवल मां के दूध से पूरी नहीं की जा सकती। इसलिए, छः महीने पूरे होने के बाद, बच्चे को पूरक आहार देना महत्वपूर्ण है ताकि बच्चे का ठीक से विकास हो सके। शहद की तरह गाढ़ा जो चम्मच में रुके और जिसे बच्चा आसानी से निगल भी सके।
गंभीर एवं अति कुपोषण - उम्र > पूरक आहार > कितनी बार देना है > औसतमात्रा
6-9 माह > गाढ़ी दाल, गाढ़ा दलिया, खिचड़ी, मसला हुआ केला > हर दिन 2-3 बार स्तनपान के साथ खिलाएं। > 2-3 खाने वाले चम्मच भर कर शुरू करें।
9-12 माह > टुकड़े किया हुआ खाना, मसला हुआ खाना, चावल, रोटी, दाल,ओट्स, सब्जियां, मसला हुआ अंडा > 3-4 बार स्तनपान के साथ + 1-2 नाश्ते के रूप मे आहार दे > 250 मि.ली. कप या कटोरे को आधा भर कर खिलाएं।
एक साल के बाद: एक साल के बाद परिवार मे पकाये जाने वाले सभी तरह के भोजन दे, आमतौर पर माँ के लिए अनुशंसित भोजन की मात्रा के अनुपात में आधी मात्रा बच्चे को देनी चाहिए। दो साल पूरा होने की बाद भी पूरक आहार के साथ-साथ माँ का दूध भी जारी रखा जा सकता है।
उम्र > पूरकआहार > कितनी बार देना है > औसत मात्रा
12-24 माह > पका और मसला या टुकड़े किया हुआ खाना, दलिया, खिचड़ी, दाल, चावल, रोटी, मांस, अंडा, सब्जियां, केला और अन्य फल > 3-4 बार स्तनपान के साथ + 1-2 नाश्ते के रूप मे आहार > 250 मि.ली.कप या कटोरे को 3/4 भर कर खिलाएं।
4. स्वास्थ्य शिक्षा: माता-पिता और देखभालकर्ताओं को शिशु देखभाल से संबंधित पहलुओं के बारे में प्रशिक्षित करना चाहिए, जैसे स्वच्छता, पोषण, और खतरों के संकेतों की पहचान के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
5. टीकाकरण: सुनिश्चित करना कि बच्चों को सामान्य बचपन की बीमारियों के खिलाफ टीका लगाया गया है। टीकाकरण उन संक्रमणों को रोकता है जो कुपोषण का कारण बन सकते हैं।
6. स्वच्छता और साफ पानी: साफ पानी और उचित स्वच्छता की पहुंच से डायरिया रोगों की घटनाओं को कम किया जा सकता है, जो कुपोषण से निकटता से जुड़े हुए हैं।
अति-गंभीर कुपोषण का प्रबंधन - Management of severe malnutrition
समुदाय-आधारित प्रबंधन: जिन बच्चों में अति-गंभीर कुपोषण के साथ चिकित्सा जटिलताएं नहीं हैं, उनका उपचार घर पर रेडी-टू-यूज़ थेरेप्यूटिक फूड्स (RUTF) से किया जाता है। यह सुविधा आंगनवाड़ी केंद्र में उपलब्ध है। अगर बच्चा कमजोर है और वजन नहीं बढ़ रहा है तो तुरंत अपने आंगनवाड़ी केंद्र में जाकर वजन करना चाहिए। बच्चे की वृद्धि और स्वास्थ्य के बाद बच्चे की आवश्यकता अनुसार थेरेप्यूटिक फूड देना प्रारंभ कर दिया जाता है। बच्चे के समग्र विकास के लिए उसके स्वास्थ्य की निगरानी के लिए नियमित फॉलो-अप किए जाते हैं।
इनपेशेंट देखभाल: जिन बच्चों में गंभीर एवं अति कुपोषण के साथ चिकित्सा जटिलताएं (जैसे गंभीर संक्रमण, निर्जलीकरण या अन्य कोई बीमारी) हैं, उनका उपचार स्वास्थ्य सुविधाओं यानी पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) में किया जाता है। इन केंद्रों में बच्चे की बीमारियों के निदान के साथ-साथ थेरेप्यूटिक फीड दिया जाता है और बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार होने पर उसे केंद्र से डिस्चार्ज कर समुदाय में भेज दिया जाता है, जहाँ बच्चे के सुधार को सुनिश्चित करने के लिए आंगनवाड़ी में साप्ताहिक फॉलो-अप किए जाते हैं।
गंभीर एवं अति कुपोषण को कम करने में सहायक कार्यक्रम
1. पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन): 2018 में बच्चों, गर्भवती महिलाओं, और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण परिणामों में सुधार करने के लिए शुरू किया गया। स्टंटिंग, कुपोषण, एनीमिया, और कम जन्म भार को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
2. मध्याह्न भोजन योजना: स्कूल के बच्चों को पोषक तत्वों से भरपूर भोजन प्रदान करता है ताकि उनके पोषण स्तर में सुधार हो सके और उनकी सीखने की क्षमता बढ़ सके।
3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): कम आय वाले परिवारों को आवश्यक खाद्यान्न सब्सिडी दरों पर वितरित करके खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
4. जननी सुरक्षा योजना (JSY): सुरक्षित प्रसव और प्रसवोत्तर देखभाल सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देता है, जिससे मातृ और नवजात मृत्यु दर कम होती है।
भारत में गंभीर एवं अति कुपोषण से निपटने के लिए निवारक उपायों, प्रभावी उपचार प्रोटोकॉल, और मजबूत सरकारी कार्यक्रमों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। लगातार निगरानी, सामुदायिक भागीदारी, और निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यक है ताकि गंभीर एवं अति कुपोषण को कम किया जा सके और राष्ट्र के बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके।
यह लेख केवल जानकारी के लिए है, डॉक्टर की सलाह के बाद ही सुझाए गए उपायों को लागू करे।
✒ लेखक Dr. Indresh Kumar, एम्स भोपाल में Reginal Center of Excellence for Nutrition Rehabilation के Programme Coordinator हैं।
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