BNS 243 - न्यायालय के आदेश से पहले या बाद संपत्ति को छिपा लेना दण्डनीय अपराध, जानिए

जब किसी संपत्ति संबंधित सिविल मामलों में किसी पक्षकार को लगता है कि फैसला उसके पक्ष में नहीं आ सकता है तो वह अपनी विवादित संपत्ति छिपाने या ठिकाने लगाने की प्लानिंग करता है क्योंकि वह न्यायालय के आदेश या डिक्री से पहले ही विवादित संपत्ति का लाभ उठा सके, और विरोधी पक्ष हाथ मलता हुआ रह जाए लेकिन भारतीय न्याय संहिता के अनुसार ऐसा करना एक दंडनीय अपराध है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 243 की परिभाषा 

जो कोई व्यक्ति सिविल मामले मे न्यायालय के आदेश आने से पहले या न्यायालय की डिक्री, आदेश के बाद आपनी संपत्ति को कपटपूर्वक छिपाता है, उस स्थान से हटाता है, या कहीं संपत्ति को ठिकाने लगाता है तब  वह व्यक्ति BNS की धारा 243 के अंतर्गत दोषी होगा।

Bharatiya Nyaya Sanhita,2023 Section 243  Provision of punishment 

यह अपराध असंज्ञेय एवं यह जमानतीय अपराध होते हैं, अर्थात पुलिस थाने में इस अपराध की एफआईआर भी दर्ज नहीं होती है लेकिन पुलिस अधिकारी NCR लिख सकती है। इस अपराध के लिए न्यायालय में परिवाद लगाया जा सकता है एवं सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। इस अपराध के लिए अपराधी व्यक्ति को तीन वर्ष की कारावास या 5000 रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें। 

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