अरहर की ज्यादा उत्पादन लेने किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के अधिकारियों ने जिले के किसानों को धारवाड़ विधि से बोनी करने की सलाह दी है । विभाग के अधिकारियों के मुताबिक धारवाड़ विधि में परंपरागत विधि की तुलना में बीज और समय की बचत होती है तथा उत्पादन भी लगभग दुगना प्राप्त होता है।
धारवाड़ विधि से अरहर की बोनी के फायदे
धारवाड़ विधि से अरहर की बोनी करने से होने वाले फायदों की जानकारी देने मंगलवार को अनुविभागीय अधिकारी कृषि पाटन डॉ. इंदिरा त्रिपाठी, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्रीकांत यादव, पंकज श्रीवास्तव, विकासखण्ड तकनीकी प्रबंधक हरीश बर्वे, कृषि विस्तार अधिकारी सीमा राउत ने अपने मार्गदर्शन में ग्राम लुहारी सुखा के कृषक भगवान दास पटेल के खेत में धारवाड़ विधि से अरहर की बोनी करवाई ।
इस अवसर पर मौजूद किसानों को डॉ इंदिरा त्रिपाठी ने बताया कि धारवाड़ विधि से अरहर की बोनी करने से स्वस्थ्य पौधा तैयार होता है एवं उत्पादन लगभग दोगुना मिलता है । धारवाड़ विधि में पहले पौधे की नर्सरी तैयार करते हैं, जिससे खेत में अरहर का लगने वाला समय बच जाता है । किसान को अतिरिक्त समय खेती की तैयारी करने के लिए मिल जाता है । उन्होंने बताया कि इस विधि में विशेष ध्यान देने वाली बात यह है की नर्सरी की पौध तैयार होने के बाद जब उसे खेत में ट्रांसप्लांट करते हैं, उसके 20 से 25 दिन बाद पौधे के ऊपर की बड को तोड़ दिया जाता है ।इससे पौधे में अधिक कन्से निकलते हैं । पौधे में यह प्रक्रिया तीन बार की जाती है, जिससे पौधे का विकास अच्छा होता है और पौधे में फलियों की संख्या बढ़ जाती है और उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि होती है ।
अरहर की धारवाड़ विधि क्या है
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के अधिकारियों के अनुसार धारवाड़ विधि अरहर बोवाई की नई तकनीक है। इसमें अरहर को सीधे ना बोते हुए रोपा पद्धति से बोवाई की जाती है । इससे प्रत्येक पौधा स्वस्थ तैयार होता है। धारवाड़ विधि में पहले पौधे को नर्सरी में तैयार करते हैं और पौधे तैयार हो जाने बाद उन्हें खेतों में ट्रांसप्लांट किया जाता है।
धारवाड़ विधि से खेती कैसे करें
किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस विधि में सबसे पहले बीज की व्यवस्था की जाती है। ऐसे बीज का चयन करना होता है, जिसमें अरहर की फसल लगभग 160 दिन में तैयार हो जाये। किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि धारवाड़ विधि में प्रति हेक्टयर 1 किलोग्राम बीज लगता है। जबकि परंपरागत विधि में 25 किलो प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है और एक हेक्टेयर में बोवाई करने के लिए 10 हजार पौध की आवश्यकता होती है। धारवाड़ विधि में सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है की रोपाई के पश्चात इसमें पोटाश अवश्य डालना चाहिये। इस विधि का उपयोग करके अच्छी फसल पैदा कर सकते हैं। धारवाड़ विधि में परंपरागत विधि की तुलना में बीज और समय की बचत होती है साथ ही उत्पादन लगभग दुगना प्राप्त होता है।
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