Legal Advice - झूठा साक्ष्य देना कब अपराध होता है कब नहीं जानिए

Bhopal Samachar
नए कानून भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अध्याय 14 में धारा 227 से 269 तक मिथ्या साक्ष्य एवं लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के विषय मे बताया गया है एवं यह अपराध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अध्याय 11 में धारा 191 से 229 तक वर्णित है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 227 एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 191 की परिभाषा 

जो कोई व्यक्ति किसी न्यायालय में या किसी अधिकारी के समक्ष साक्ष्य के तौर पर कानूनी रूप से कथन, बयान, शपथ देने के लिए लिखित या मौखिक उपस्थित है और वह झूठा बयान, साक्ष्य, कथन, लेता है तब वह व्यक्ति BNS की धारा 227 एवं IPC की धारा 191 के अंतर्गत दोषी होगा।
इस अपराध के लिए आवश्यक तत्व:-
1. व्यक्ति विधिक रूप से साक्ष्य देने के लिए बाध्य होना चाहिए।
2. उसका ऐसा कथन, बयान या शपथ झूठी होना चाहिए।
3. व्यक्ति को ज्ञात होना चाहिए कि वह जो कथन, बयान दे रहा है वह झूठा था।

जैसे कि कोई व्यक्ति न्यायालय के समक्ष यह कहता है कि उसने घटनादिनांक को घटना के समय कुछ नहीं देखा था, लेकिन उसे इसके बारे मे सब कुछ पता था। तब वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा, लेकिन किसी व्यक्ति ने CrPC की धारा 164 के अंतर्गत कोई कथन किया हो तब उसे झूठे कथन के लिए दोषी नहीं कह सकते हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने रामचरण बनाम राज्य मामले में इसी सन्दर्भ में आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट द्वारा कहा गया है कि CrPC की धारा 164 के बयान झूठे कथन होने के लिए किसी को दण्डित नहीं किया जा सकता है क्योंकि व्यक्ति का यह बयान भय के कारण झूठा हो सकता है। 

Bharatiya Nyaya Sanhita Section 229 or Indian Penal Code Section 193 Provision of punishment

BNS की धारा 227 एवं IPC की धारा 191 के अपराध का दंड का प्रावधान इस धारा में दिया गया है जानिए- 
"यह अपराध,असंज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं अर्थात पुलिस थाने में इस अपराध के खिलाफ डायरेक्ट एफआईआर दर्ज नहीं होगी लेकिन पुलिस थाने से एनसीआर लिखी जा सकती है एवं इस अपराध के लिए कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद (शिकायत) दर्ज होगा। इस अपराध की सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष की जाती है। इस अपराध की सजा को दो भागों में बांटा गया है:-
1. न्यायिक कार्यवाही के दौरान झूठा साक्ष्य देने वाले को अधिकतम सात वर्ष की कारावास और दस हजार रुपये जुर्माना (इस अपराध की सुनवाई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा)।
2. किसी अन्य मामलों मे झूठे साक्ष्य देने पर अधिकतम तीन वर्ष की कारावास ओर पाँच हजार रुपये जुर्माना (इस अपराध की सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।) लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें। 

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