झूठा साक्ष्य बनाने या तैयार करने वाले के खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है - Legal Advice

Bhopal Samachar
किसी व्यक्ति द्वारा न्यायालय में या किसी अधिकारी के समक्ष झूठा साक्ष्य देना भारतीय न्याय संहिता की धारा 227 के अंतर्गत अपराध होता है लेकिन अगर कोई व्यक्ति कोई झूठे साक्ष्यों को, दस्तावेजों को, शपथ पत्र आदि को बनाता है या गढना है तब उसके खिलाफ किस धारा के अंतर्गत मामला दर्ज होगा जानिए।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 228 एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 192 की परिभाषा 

जो कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही में या किसी लोक सेवक (सरकारी अधिकारी या कर्मचारी) के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए झूठे दस्तावेज तैयार करेगा, मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा, झूठा शपथ पत्र तैयार करेगा, अथवा इसके समकक्ष कुछ भी करेगा, तब वह व्यक्ति BNS की धारा 228 एवं IPC की धारा 192 के अंतर्गत दोषी होगा। 

इस अपराध के लिए निम्न आवश्यक तत्व होना जरूरी है:-

1. कोई व्यक्ति किसी पुस्तक या दस्तावेज को मिथ्या प्रविष्टि करता है जिसमें कथन का मिथ्या होना आवश्यक है।
2. कोई मिथ्या कथन, दस्तावेज किसी न्यायिक कार्यवाही या लोक सेवक के समक्ष साक्ष्य के रूप मे प्रस्तुत किया जा रहा हो।
3. ऐसे मिथ्या (झूठा) साक्ष्य के आधार पर निर्णय लेने वाला व्यक्ति गलत निर्णय ले। 
4. ऐसा गलत निर्णय न्यायिक कार्यवाही को प्रभावित करता हो। 
5. झूठे दस्तावेज के अंतर्गत पुस्तक, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख, डिजिटल दस्तावेज आदि सभी आते हैं।
अर्थात्‌ झूठा साक्ष्य गढ़ना मात्र इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है जब तक उन दस्तावेजों को किसी न्यायालय में या लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया हो।

अफजल बनाम हरियाणा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विनिश्चय किया कि जाली हस्ताक्षर करके झूठा शपथ पत्र (affidavit) फ़ाइल किया जाना IPC की धारा 192 के अंतर्गत अपराध होता है।

Bharatiya Nyaya Sanhita Section 229 or Indian Penal Code Section 193 Provision of punishment

BNS की धारा 228 एवं IPC की धारा 192 के अपराध का दंड का प्रावधान इस धारा में दिया गया है जानिए- 
यह अपराध,असंज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं अर्थात पुलिस थाने में इस अपराध के खिलाफ डायरेक्ट एफआईआर दर्ज नहीं होगी लेकिन पुलिस थाने से एनसीआर लिखी जा सकती है एवं इस अपराध के लिए कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद (शिकायत) दर्ज होगा। इस अपराध की सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष की जाती है। इस अपराध की सजा को दो भागों में बांटा गया है:-
1. न्यायिक कार्यवाही के दौरान झूठा साक्ष्य गढने वाले व्यक्ति को अधिकतम सात वर्ष की कारावास और दस हजार रुपये जुर्माना (इस अपराध की सुनवाई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा)।
2. किसी अन्य मामलों मे झूठे साक्ष्य गढने वाले व्यक्ति को अधिकतम तीन वर्ष की कारावास ओर पाँच हजार रुपये जुर्माना (इस अपराध की सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।) लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें। 

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