फर्जी दिव्यांगता सर्टिफिकेट लगाकर सरकारी नौकरी प्राप्त करने वाले मामले में जांच के दौरान भिंड जिले में 7 डॉक्टर और 157 शिक्षक दोषी पाए गए हैं। भिंड कलेक्टर ने यह जांच रिपोर्ट लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल को भेज दी है। जहां शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई का फैसला किया जाएगा लेकिन फर्जी सर्टिफिकेट बनाने वाले डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई के लिए रिपोर्ट कहां भेजी गई है, भिंड कलेक्टर की ओर से नहीं बताया गया है।
मेडिकल बोर्ड नहीं बल्कि डॉक्टर ने सर्टिफिकेट जारी कर दिया
तीन सदस्यीय कमेटी अपने मामले की जांच की थी। जांच में शिक्षकों के मेडिकल सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए हैं। इनमें दो गड़बड़ियां हैं। पहली- डॉक्टर ने उस बीमारी का सर्टिफिकेट जारी कर दिया, जिसका वह विशेषज्ञ ही नहीं है। दूसरी, सर्टिफिकेट मेडिकल बोर्ड के बजाए एकल डाक्टर से जारी किए गए। नियम के मुताबिक किसी भी सरकारी नौकरी के लिए सरकारी डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड ही सर्टिफिकेट जारी कर सकता है। साल 2022 में भर्ती हुए इन शिक्षकों की बर्खास्तगी के लिए विभाग ने जांच रिपोर्ट लोक शिक्षण संचालनालय को भेज दी है।
डेढ़ साल तक जांच को टालते रहे
अहम बात ये है कि मामला डेढ़ साल पहले ही पकड़ में आ गया था, लेकिन शिक्षकों को बचाने के लिए अफसरों ने डेढ़ साल तक जांच दबाए रखी, जबकि ऐसे ही मामले में मुरैना, ग्वालियर, छतरपुर और टीकमगढ़ समेत कई जिलों में 205 शिक्षकों को बर्खास्त किया जा चुका है।
मुझसे पहले किसी ने जांच क्यों नहीं कराई, मैं नहीं बता सकता: कलेक्टर भिंड
संजीव श्रीवास्तव, कलेक्टर, भिंड का कहना है कि, विधानसभा चुनाव के समय मेरी पोस्टिंग भिंड हुई थी। मुझे मामले की जानकारी मिली तो मैंने तुरंत जांच कमेटी बनाई। जांच के बाद कमेटी ने रिपोर्ट भेज दी है। आगे का फैसला शिक्षण संचालनालय के स्तर पर होगा। मुझसे पहले किसी ने क्यों नहीं जांच करवाई, इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।
कलेक्टर की जांच में इन डॉक्टरों को दोषी पाया गया
1. डॉ. आरसी श्रीवास्तव : (आंख, कान, नाक और गला विशेषज्ञ) इन्होंने हड्डी रोग के तीन, नेत्र रोग का एक, मेंटल हेल्थ के दो, मल्टी डिस्ट्रॉफी का एक सर्टिफिकेट बनाया। यह नौकरी में इस्तेमाल हुआ।
2. डॉ. जेपीएस कुशवाह : (हड्डी रोग विशेषज्ञ) पूजा सिंह और कमलेश कुमार पुत्र रघुवीर का मेंटल हेल्थ का दिव्यांगता प्रमाण पत्र बना दिया। इसी प्रमाणपत्र पर दोनों को नौकरी मिल गई।
3. डॉ. यूपीएस कुशवाह : (हड्डी रोग विशेषज्ञ) 2014 में अमित सिंह तोमर का मल्टी डिस्ट्रॉफी और संजय कुमार का मेंटल हेल्थ दिव्यांगता का प्रमाण पत्र बना दिया। दोनों शिक्षक बने।
4. डॉ. आरके अग्रवाल: (हड्डी रोग विशेषज्ञ) मेंटल हेल्थ के तीन, लर्निंग डिसेबिलिटी के दो, विजुअल हेंडीकेप्ड का एक, हियरिंग हेंडीकेप्ड के दो सर्टिफिकेट बनाए।
5. डॉ. रवींद्र चौधरी और डॉ. आरएन राजौरिया : (ईएनटी विशेषज्ञ) इन्होंने अपनी विशेषज्ञता के बजाए दूसरे मर्ज की विकलांगता के सर्टिफिकेट बना दिए। 6. डॉ. आरके गांधी : (नेत्र रोग विशेषज्ञ) इन्होंने 10 में से एक अस्थि रोग का एक सर्टिफिकेट बनाया है।
7. डॉ जेएस यादव : (अस्थि रोग विशेषज्ञ) इन्होंने एक लर्निंग डिसेबिलिटी की दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाया है।
(यह सभी डॉक्टर भिंड जिला अस्पताल में पदस्थ रहे हैं।)
हमने जांच रिपोर्ट भेज दी है, फैसला शासन करेगी
व्योमेश शर्मा, डीपीसी भिंड व तीन सदस्यीय जांच कमेटी के प्रमुख का कहना है कि, दो-चार शिक्षकों को छोड़कर सभी के दिव्यांग सर्टिफिकेट सिंगल डॉक्टर ने जारी किए हैं, जबकि दिव्यांग सर्टीफिकेट मेडिकल बोर्ड का मान्य होता है। जिस बीमारी में विशेषज्ञता नहीं है, उसके भी डॉक्टर्स ने सर्टिफिकेट बना दिए। हमने जांच रिपोर्ट भेज दी है। कार्रवाई का फैसला डीपीआई को लेना है।
हम दूसरी विधा में दिव्यंगता सर्टिफिकेट क्यों बनाएंगे
डॉ. जेपीएस कुशवाह का कहना है कि, हम दूसरी विधा में दिव्यंगता सर्टिफिकेट क्यों बनाएंगे। कई बार ऐसा होता है कि पैनल में सीनियर डाक्टर होने के नाते हमने साइन कर दिए हों। अब तो यूडीआईडी बन गई। इसलिए पुराने प्रमाण पत्र तो स्वत: ही अमान्य माने जाएंगे। -
डॉ. आरके अग्रवाल का कहना है कि, पहले सिंगल डॉक्टर दिव्यांग सर्टिफिकेट बनाते थे। मैं तो क्या कोई भी डॉक्टर ऐसा दिव्यांग सर्टीफिकेट क्यों बनाएगा, जिसका वह विशेषज्ञ ही नहीं है। क्लर्क ने गलत नाम दर्ज कर दिया होगा।
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