भारत में लोग बीमा नहीं करवाते क्योंकि क्लेम के सेटलमेंट के समय बीमा कंपनी बेईमानी करने लगती है। मध्य प्रदेश के इंदौर में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी की बेईमानी पकड़ी गई। उन्होंने अपने 10 साल पुराने ग्राहक को हेल्थ इंश्योरेंस का क्लेम देने से मना कर दिया। तर्क दिया कि आप मोटापे के कारण बीमार हो गए हो। इसलिए क्लेम नहीं देंगे। 4 साल लड़ाई लड़ने के बाद उपभोक्ता फोरम ने ग्राहक को मानसिक रूप से प्रसारित करने के लिए जुर्माना लगाया और क्लेम की पूरी रकम ब्याज सहित अदा करने का आदेश दिया।
साल 2000 में मेडिक्लेम पॉलिसी ली थी, 2020 में तबीयत खराब हुई
मामला राधा नगर, नीलकंठ कॉलोनी के रहने वाले राजेंद्र भाटिया का है। साल 2000 में उन्होंने खुद व परिवार का नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से मेडिक्लेम कराया था। 16 दिसंबर 2020 को पैरों में सूजन आई। सांस लेने में भी दिक्कत हुई। इंदौर के ही प्राइवेट अस्पताल में चेकअप कराया। सीटी स्कैन और अन्य जांचें हुईं। डॉक्टर की सलाह के बाद मुंबई ले गए और वहां भी एक प्राइवेट अस्पताल में चेकअप कराया, जिसके बाद वहां भर्ती करना पड़ा। जांच में खुलासा हुआ कि उनके फेफड़ों में पानी भर गया है।
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने मेडिक्लेम खारिज कर दिया
मुंबई के प्राइवेट अस्पताल में भाटिया को करीब 10 दिन भर्ती रखा। यहां शरीर से पानी निकाला गया तब राहत मिली। इलाज में 2.33 लाख रुपए खर्च आया। बीमा कंपनी ने 9 अगस्त 2021 को यह कहकर क्लेम देने से मना कर दिया कि मोटापे की वजह से मेडिक्लेम देने के लिए बाध्य नहीं है। हालांकि, भाटिया ने जानकारी दी कि बीमा कंपनी ने 2000 में मेडिक्लेम पॉलिसी करते समय वजन संबंधी कोई जानकारी नहीं ली थी। जब 2020 से 2021 के लिए 5 लाख रुपए की यह पॉलिसी रिन्यू कराई थी तब भी ऐसी कोई जानकारी नहीं ली गई।
मोटापे के कारण बीमार हुए हैं, इसलिए क्लेम नहीं देंगे: बीमा कंपनी ने कहा
बीमा कंपनी पैनल ने इलाज के दस्तावेज के आधार पर भाटिया को यह तर्क दिया कि हाइपोवेंटिलेशन के साथ ऑब्स्ट्रक्ट स्लीम एपनिया के साथ पिकविकियन सिंड्रोम से ग्रस्त थे। इसे ओबेसिटी हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम कहा जाता है जो मोटापे के कारण होता है। ऐसे में उन्हें मेडिक्लेम का लाभ नहीं दिया जा सकता। बीमा कंपनी द्वारा मेडिक्लेम खारिज करने के बाद भाटिया ने जिला उपभोक्ता फोरम की शरण ली। यहां करीब एक साल सुनवाई चली।
पॉलिसी के समय मोटापे या वजन की कोई बात नहीं की थी
भाटिया का कहना है कि बीमा कंपनी की बड़ी अजीबो-गरीब स्थिति बताई है। 2000 में जब मेडिक्लेम पॉलिसी ली तब मेरा वजन करीब 100 किलो था। उस दौरान कंपनी ने वजन को लेकर कोई जानकारी नहीं ली, न ही आपत्ति ली गई। 2020 में जब बीमार हुआ और क्लेम रिजेक्ट हो गया तब मेरा वजन पहले से कम था। इसके बाद मोटापा कारण बताकर क्लेम खारिज कर दिया गया था।
फोरम ने यह पाए तथ्य
एडवोकेट रविराज सिंह के मुताबिक बीमा कंपनी ने जो दस्तावेज पेश किए उसमें कोई भी ऐसा तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं पाया गया जिससे यह साबित हो कि फरियादी ने मोटापे का ट्रीटमेंट कराया है। इसके बावजूद बिना ठोस कारण के क्लेम खारिज किया है। बीमा कंपनी को 2 लाख 33 हजार 550 रुपए रुपए चुकाने होंगे। साथ में क्लेम पेश करने की तारीख 4 जनवरी 2023 से 9% ब्याज सहित राशि 45 दिन के अंदर देनी होगी। मानसिक परेशानी के लिए 10 हजार रुपए और परिवाद खर्च 5 हजार रुपए भी लगेगा।
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