सन 1947 में कुछ नेताओं ने भारत को धर्म के आधार पर विभाजित कर दिया था, फिर जाति के आधार पर आरक्षण ने पूरे भारत में जातिवाद को बढ़ा दिया। अब जाति के आधार पर राज्यों के विभाजन की मांग उठने लगी है। आदिवासी संगठनों ने उनके लिए भील प्रदेश की मांग की है। इसमें कुल 36 जिले होंगे जिनमें से इंदौर सहित 13 जिले मध्य प्रदेश के होंगे। शेष जिले राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के हैं।
मध्य प्रदेश से कितने जिले अलग हो जाएंगे
आदिवासी संगठनों ने अपने प्रस्तावित भील प्रदेश के लिए कल 36 जिलों की मांग की है। इनमें मध्य प्रदेश के इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी एवं अलीराजपुर जिले मांगे गए हैं। भारत में वोट बैंक की राजनीति चल रही है। जिन जातियों के लोग किसी एक मुद्दे पर सामूहिक वोट देने का ऐलान करते हैं सरकार उनकी बातों को मान लेती है। पिछड़ा वर्ग के कुछ नेता जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति के समान आरक्षण की मांग कर रहे हैं। अब यदि भील प्रदेश की मांग मान ली गई तो मध्य प्रदेश किसान इंदौर सहित उपरोक्त सभी जिले मध्य प्रदेश से अलग हो जाएंगे।
मध्य प्रदेश के अलावा किन राज्यों के कितने जिले भील प्रदेश में जाएंगे
- राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां, पाली।
- गुजरात के अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा, भरूच, वलसाड़।
- महाराष्ट्र के नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर, नंदुरबार।
संसद में कोई विरोध ना करें इसलिए वोट बैंक का प्रदर्शन शुरू
“भील प्रदेश” की मांग करने वाले नेताओं का कहना है कि, 3 करोड़ आदिवासी मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के करीब 49 जिलों में निवास करते हैं। इनकी संख्या मध्यप्रदेश में करीब 21%, गुजरात में 14.8%, राजस्थान में 13.48% और महाराष्ट्र में 9.35% हैं। अर्थात इन चारों राज्यों में विधानसभा चुनाव के नदियों को कभी भी बदल सकते हैं। नेताओं का कहना है कि भारत देश में हमारी संख्या करीब 11 करोड़ से अधिक है। अर्थात, जो भील प्रदेश का समर्थन करेगा उसे 11 करोड़ वोट मिलेंगे और जो विरोध करेगा उस पार्टी को लोकसभा के साथ सभी राज्यों की विधानसभा चुनाव में भी नुकसान उठाना पड़ेगा।
जाति के आधार पर भील प्रदेश के गठन की कितनी संभावना है
भारत का इतिहास बताता है कि वोट बैंक के दबाव में अथवा वोट बैंक के लालच में आज नहीं तो कल इस प्रकार की मांगों को स्वीकार कर ही लिया जाता है। 1945 से पहले भारत में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि धर्म के आधार पर देश का विभाजन हो जाएगा।
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